आज ३ जुलाई २०१६ के ‘जनसत्ता’/चौपाल में मेरा पत्र.
हमारे समाज में समय-समय पर ऐसे मनीषी हुए हैं जिनके योगदान की देश-विदेश में सरहाना की गयी है. ऐसे महापुरुष चिरकाल तक याद रखे जाएँ, इसके लिए हमारे यहाँ विश्वविद्यालय,स्टेडियम, पार्क, चौराहे, एयरपोर्ट, आदि के नाम इन के नामों पर रखने की परिपाटी रही है.मगर विडंबना यह रही है कि ज्यादातर ये नाम सत्ताधारी/गैर-सत्ताधारी पार्टी से जुड़े (छोटे-बड़े) राजनेताओं के नामों पर हैं या फिर किसी-न-किसी तरह से राजनीति से प्रेरित हैं.नतीजतन एक पार्टी के सत्ता से विमुख हो जाने पर दूसरी सत्तारूढ़ पार्टी फटाफट नाम बदल देती है. नाम रखने या बदलने की कोई राष्ट्रीय नीति होनी चहिये और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई समिति भी बननी चाहिए. खास तौर पर राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों,शिक्षण-संस्थानों,भवनों,राजमार्गों,पब्लिक-पार्कों आदि के नामकरण/पुनःनामकरण के बारे में हमारी क्या नीति(सोच) हो,इस पर खुले मन और निष्पक्ष भाव से विचार होना चाहिए.
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर
No comments:
Post a Comment