आप्त वचन
(फेसबुक ने दो वर्ष पूर्व आज के ही दिन 'जनसत्ता' में छपा मेरा पत्र ढूँढ़ कर मेरी वाल पर चस्पां किया है.किस संदर्भ में मैं ने यह पत्र लिखा था,ठीक से याद तो नहीं आ रहा,,मगर हाँ, पत्र पढ़कर लगता है आज की तारीख में भी इस पत्र की खासी प्रासंगिकता है.)
आज १८/६/१४ के “जनसत्ता’(चौपाल) में मेरा छोटा-सा पत्र.
"संतोषी सदा सुखी" एक आप्त वचन है।मगर व्यवहार में,ख़ास तौर पर राजनीति में ,इस वचन के उपदेश की ज़रा भी चलती होती तो भद्रजन यों अखाड़े में कूदकर अपनी भद न पिटवाते। आप्त वचनों अथवा सुभाषितों से मिलने वाली नसीहत व्यवहार-कुशलों और मौकापरस्तों के लिए नहीं होती। ऐसे लोग अपने को इस नसीहत से ऊपर मानते हैं।और फिर सत्ता का आनन्द या प्रसाद कौन छोड़ना चाहता है?आप नहीं लेंगे तो दूसरा तैयार बैठा है।आज की दुनिया में ऐसे ज्ञानगर्भित वचनों से शिक्षा लेना शायद सब के बस की बात नहीं है। लगता है, ये वचन अब मात्र पढने-पढाने अथवा विद्यार्थियों को समझाने या फिर वाक्य में प्रयोग करने के लिए रह गये हैं,अमल में लाने के लिए नहीं।
शिबन कृष्ण रैणा
http://epaper.jansatta.com/290320/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-18062014#page/6/2http://epaper.jansatta.com/290320/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-18062014#page/6/2
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