Monday, October 30, 2017



सतीसर से कश्मीर


कहते हैं कि मुग़ल बादशाह जहांगीर जब पहली बार कश्मीर पहुंचे तो उनके मुंह से सहसा निकल पड़ा: “गर फिरदौस बर रूए ज़मीन अस्त,हमीं असतो,हमीं असतो,हमीं अस्त”।अर्थात् “जन्नत अगर पूरी कायनात में कहीं पर है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।“

भारत का मुकुटमणि,धरती का स्वर्ग, यूरोप का स्विट्ज़रलैंड, कुदरत की कारीगरी और अकूत ख़ूबसूरती का खजाना:पहाड़,झीलें,वनस्पति,हरियाली,महकती पवन... ऐसा लगता है मानो पूरा-का-पूरा ‘स्वर्ग’ धरती पर उतर आया हो! यह नजारा है कश्मीर की धरती का।तभी तो इसे धरती का ‘स्वर्ग’ कहा जाता है।
कश्मीर घाटी का नाम कश्मीर कैसे पड़ा? इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है.
कश्मीर को कश्मीरी भाषा में कशीर तथा इस भाषा को का’शुर कहते हैं।‘कश्मीर’ शब्द के कशमीर,काश्मीर,काशमीर आदि पर्यायवाची भी मिलते हैं। इन में से सवार्धिक प्रचलित शब्द कश्मीर ही है।इस शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक मत हैं।

हजारों सैंकड़ों साल पहले कश्मीर में नाग जाति के लोग रहते थे | पौराणिक गाथाओं के अनुसार इन नागों का राजा प्रजापति कश्यप का पुत्र नीलनाग था | यह तब की बात है जब सारा कश्मीर जलमग्न था | केवल ऊपरी भागों अथवा पर्वतीय स्थानों पर नाग जाति के लोग रहते थे | पानी में डूबा सारा भू-भाग सतीसर कहलाता था | इसी सतीसर में जलोदभव (जलदभू) नाम का विशालकाय दैत्य रहता था | अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर जलदभू को तीन वर प्राप्त हुए थे | एक, जब तक वह जल में है, कोई इसे मार नही सकता | दो,अतुलनीय शक्ति और पराक्रम व तीन मायावी शक्ति की प्राप्ति | उस क्रूर दैत्य ने आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले नागों का जीवन नरकतुल्य बना दिया था | वह उनको पीडाएं पहुंचाता, भक्षण करता आदि-आदि |

जलदभू की क्रूरता से दुखी होकर नागों के राजा नीलगान ने तीर्थयात्रा पर निकले कश्यप ऋषि से जलदभू के अत्याचारों की करुण-कथा वर्णित की | तब नीलनाग को साथ लेकर कश्यप ब्रह्मलोक में गए | वहां से ब्रह्मा, बिष्णु, महेश के साथ वे सतीसर की ओर चल पड़े | कहा जाता है कि उनका अनुगमन अन्य देवताओं और असुरों ने भी किया | सभी अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर चल दिए | सुर और असुर दोनों की सेनाएं भी सतीसर पहुँच गई | सेनाओं के गगनभेदी स्वर ने जलदभू दैत्य को सतर्क कर दिया | वह जल में छिप गया | जल में उसे अमरत्व प्राप्त था | उसे जल से बाहर निकालना आवश्यक हो गया | तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव हरिपुर के निकट नौबंधन के निकट पहुंच कर कौंसर-नाग के तीन शिखरों के बीच वाले शिखर पर शिव, दक्षिण में विष्णु व उत्तर शिखर पर ब्रह्मा ने अपना-अपना स्थान ग्रहण किया | जलदभू चूंकि जल में सुरक्षित था, अत: टस-से-मस नहीं हुआ | तब युक्ति से कम लिया गया | सतीसर के पानी को बाहर निकालने की बात सोची गई | नीलमत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने बलभद्र की सहायता से हल के प्रहार द्वारा बारहमूला के निकट(आधुनिक बारामूला) पहाड़ को तोड़ दिया| पानी वेग से निकलने लगा | तब जलदभू ने माया का खेल रच कर अंधकार का सृजन किया | घोर अंधकार से नौबंधन डूब गया | शिव ने सूर्य और चन्द्र को अपने हाथों में लिया | अंधकार दूर हो गया | तब विष्णु और जलदभू दैत्य का युद्ध हुआ | दैत्य खूब पराक्रम के साथ लड़ा | पानी के निकल जाने के कारण वह कीचड़ में धंसा रहा | भीषण युद्ध के पश्चात भगवन ने चक्र द्वारा जलोदभव का सिर धड से अलग कर दिया |

दैत्य के मारे जाने व जल के निकल जाने से सतीसर सुन्दर घाटी (स्वर्ग) में बदल गया | देवता स्वर्ग के समान सुन्दर इस रमणीक प्रदेश को देख आनंदित हुए और प्रत्येक ने अपनी-अपनी रुचि के अनुसार यहां रमण किया व देवियों ने विभिन्न नदियों का रूप धारण किया | तब कश्यप ने, जिनके प्रयासों से इस भू-भाग का उद्धार हुआ, विष्णु से कहा, ‘अब यह प्रदेश मानव जाति के रहने योग्य हो गया है, आप आशीर्वाद दे तो यहां मनुष्यों को बसाने की व्यवस्था की जाए | नाग जाति के लोगों ने मनुष्यों के साथ रहना स्वीकार नहीं किया जिस पर कश्यप ऋषि ने रुष्ट होकर शाप दे दिया: “ अब तुम पिशाचों के साथ रहोगे |”

शनै: शनै: आसपास के मैदानी क्षेत्रों से अनेक लोग कश्मीर आने लगे | कृषि द्वारा वे अपना भरण-पोषण करते, खेती करते, फसल उगाते और उपज को अपने साथ ले जाकर सर्दियों में छह महीनों के लिए वापस मैदानी इलाकों में चले जाते | घाटी में सर्दियों में इन छह महीनों के लिए पिशाच लोग आकर रहने लगते | वर्षों तक यही क्रम चलता रहा |

एक बार जब अपनी-अपनी उपज लेकर कश्मीरवासी सर्दियों के आने पर मैदानी क्षेत्रों की ओर प्रस्थान करने लगे तो उनका एक साथी चंद्रदेव जो संभवतः बुढ़ापे के कारण अशक्त और जीवन से उदासीन हो चुका था, पीछे रह गया | उधर पिशाचराज निकुंभ अपने दलबल सहित कश्मीर आया | चंद्रदेव को देख पिशाच उसे यातनाएं देने लगे | बड़ी कठिनाई से पिशाचों से जन बचा कर उसने नागों के राजा नीलनाग के यहां शरण ली | उस समय नीलनाग का आवास सतीसर के निकट वह स्थान था, जहां पर भगवन ने हल के प्रहार से सतीसर का सारा पानी बाहर निकाल दिया था | चंद्रदेव ने देखा कि नीलनाग सिंहासन पर विराजमान हैं और सैकड़ों नाग-नागिनें उनकी सेवा में दत्तचित्त हैं | चंद्रदेव नीलनाग के पैरों में गिरा और उसकी प्रशंसा में एक-दो श्लोक रचे | नीनाग प्रसन्न हुआ और उसे कोई भी वार मांगने को कहा | चंद्रदेव इसी अवसर की तलाश में था | उसने कश्मीर वासियों की कठिनाइयों का करुण वर्णन किया-कैसे छह मास के लिए उन्हें विवशतापूर्वक कश्मीर छोड़ना पड़ता है, कैसे सर्दियों के छह मास के दौरान पिशाच उनके घरों, खेतों , वृक्षों आदि को तहस-नहस कर डालते हैं आदि-आदि | कश्मीरियों को पूरे एक वर्ष के लिए घाटी में रहने की अनुमति प्रदान की जाए |

नीलनाग ने चंद्रदेव की बात मान ली और कश्मीर में स्थाई रूप से रहने की स्वीकृति प्रदान की | साथ में इस बात का स्मरण भी कराया कि कश्मीर वासियों को यहां रहने के लिए निर्धारित रीति-रिवाजों, कृत्यों, अनुष्ठानों का पालन करना होगा | आने वाले छह महीनों तक चंद्रदेव नीलनाग के साथ रहा | चैत्र मास में लोग मैदानी क्षेत्रों से कश्मीर आने लगे | कुछ दिनों में उनका राजा वीरयोधन भी आ गया | चंद्रदेव को जीवितावस्था में पाकर उन सब के आश्चर्य की सीमा न रही | उन्हें पक्का विश्वास था कि सर्दियों में पिशाचों ने चंद्रदेव की बोटी-बोटी नोच ली होगी | तब चंद्रदेव ने उनकों सारी कहानी विस्तार से समझाई और यह भी बताया कि घाटी में स्थायी रूप से रहने के लिए उन्हें नीलनाग द्वारा निर्दिष्ट कतिपय धार्मिक कृत्यों का अनुपालन करना होगा | यह सुनकर सभी लोग हर्षित हो उठे |



उन्होंने स्थाई रूप से अपने घर, मंदिर, गांव आदि बनाए | नीलनाग द्वारा बताए गए विधान की पलना का उन्होंने प्रण किया | यक्षों, नागों व अन्य देवी शक्तियों की संतुष्टि के लिए वे विभिन्न पर्व और त्यौहार मानने लगे | ‘गाड बत्त’, ‘खेचरी-मावस’ आदि कृत्य इसी विधान के सूचक हैं और आज तक कश्मीरियों द्वारा मनाए जाते हैं | इस तरह सतीसर कश्मीर कहलाया और कश्मीर में मानव संस्कृति का विकास हुआ |चूंकि यह सत्कार्य कश्यप की कृपा से संपन्न हुआ था इसलिए ‘कशिपसर’,‘कश्यपुर,’‘कश्यपमर’आदि नामों से यह घाटी प्रसिद्ध हो गई। एक अन्य मत के अनुसार कश्मीर ‘क’ व ‘समीर’ के योग से बना है।‘क’ का अर्थ है जल और ‘समीर’ का अर्थ है हवा।
जलवायु की श्रेष्ठता के कारण यह घाटी ‘कसमीर’ कहलायी और बाद में ‘कसमीर’ से कश्मीर शब्द बन गया।एक अन्य विद्वान के अनुसार कश्मीर ‘कस’ और ‘मीर’ शब्दों के योग से बना है।‘कस’ का अर्थ है स्रोत तथा ‘मीर’ का अर्थ है पर्वत।चूंकि यह घाटी चारों ओर से पर्वतों से घिरी हुई है तथा यहां स्रोतों की अधिकता है, इसलिए इसका नाम कश्मीर पड़ गया।कुछ विद्वान् ‘कश्मीर’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘काशगर’ तथा ‘कश’ आदि से मानते हैं । उक्त सभी मतों में से कश्यप ऋषि से सम्बन्धित मत अधिक समीचीन एवं व्यावहारिक लगता है।