Wednesday, May 1, 2019



चीन पर पड़े अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण उसकी हठ-धर्मिता को झुकना पड़ा और यूएन ने कुख्यात आतंकी मसूद अजहर को 'ग्लोबल टेररिस्ट' घोषित कर दिया।इसे भारत की कूटनीतिक विजय ही माना जाएगा। कुछ मित्रों का कहना है कि मसूद को बीजेपी की सरकार ने ही तो आतंकियों को सौंप दिया था आदि। 

दरअसल,24 दिसंबर 1999 को 5 हथियारबंद आतंकवादियों ने 178 यात्रियों के साथ इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज आईसी-814 को हाइजैक कर लिया था। हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने भारत सरकार के सामने 178 यात्रियों की जान के बदले में तीन आतंकियों की रिहाई का सौदा किया था। भारत सरकार ने यात्रियों की जान बचाने के लिए जिन तीन आतंकियों को छोड़ने का फैसला किया था, उनमें से मसूद अजहर भी एक था। 

देखा जाय तो उस समय जो भी सरकार होती,शायद वही करती जो उस समय की सरकार ने किया।कल्पना कीजिये, यात्रियों की जान खतरे में हो।एक यात्री का चेतावनी के तौर पर गला भी रेत दिया जाय।तो सरकार क्या करती? इस प्रसंग में उस समय विमान की हालत पर एक अधिकारी का यह बयान पठनीय है : ''जब हम विमान में घुसे तो चारों तरफ मल और पेशाब फैला था, क्योंकि सप्ताह भर से यात्री कहीं नहीं गए थे।सबकी हालत बुरी थी और आतंकियों द्वारा रुपिन कात्याल की हत्या के बाद हुए झगड़े में कुछ यात्री घायल भी हो गए थे।तीन आतंकियों के बदले दो सौ के करीब यात्रियों की जान की सुरक्षा का सवाल था।यों,वीपी सिंह के शासनकाल में भी गृहमंत्री मुफ़्ती सैयद की बेटी रूबिया को कुछेक आतंकियों के बदले छोड़ना पड़ा था।ऐसे संवेदनशील और तनावपूर्ण क्षणों में सरकार को बहुत सोच-समझ कर जनहित अथवा देशहित में निर्णय लेने पड़ते हैं। दिल पर हाथ रखकर सोचें: संयोग से अगर हमारा भी कोई रिश्तेदार: भाई,पत्नी,बेटा,बाप,बहन या माता इस जहाज़ में होते तो हमारा रवैया क्या होता?क्या हम अपनों को किसी भी मूल्य पर छुड़ाने की गुहार नहीं लगाते?या फिर अपने बाप/बेटे/पत्नी आदि को मरने दे देते!आतंकियों अथवा फिरौती मांगने वालों को तो हम देर-सवेर दबोच लेते मग़र खुदा-न-खास्ता अगर वे दरिन्दे आतंकी यात्रियों की एक-एक कर के हत्या कर देते तो उनकी मूल्यवान ज़िन्दगियों को हम वापस कहाँ से ले आते?इसलिए उस समय का सरकार का निर्णय सर्वथा समयोचित ही नहीं,कूटनीतिक भी था। 

शिबन कृष्ण रैणा 

अलवर