Sunday, August 1, 2021







भारतीय संस्कृति का पावन पर्व कृष्ण-जन्माष्टमी

डा० शिबन कृष्ण रैना

हमारा देश सांस्कृतिक दृष्टि से एक समृद्ध देश है। इसकी वैविध्यपूर्ण संस्कृति हमारे विभिन्न त्योहारों और पर्वों में झलकती है।यहाँ होली, दीवाली, दशहरा, पोंगल, महाशिवरात्रि, क्रिसमस, ईद इत्यादि अनेक त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं।भारतवासी ये त्योहार पूर्ण उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं। हमारे इन सभी त्योहारों और पर्वों में कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष ३० अगस्त को कृष्ण-जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी अथवा कृष्ण-जन्माष्टमी प्रभु श्रीकृष्ण पर आस्था रखने वाले भक्तजनों के लिए एक बहुत बड़ा दिन होता है।

पौराणिक ग्रथों के अनुसार भगवान विष्णु ने इस धरती को पापियों के अन्यायों से मुक्त कराने के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था।मान्यता है कि आज से लगभग पाँच सहस्त्र वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था । पौराणिक कथा के अनुसार देवकी कंस की बहन थी और कंस मथुरा का राजा था। उसने मथुरा के राजा और अपने पिता अग्रसेन को जेल में बंदी बना लिया था और खुद राजा बन गया था। कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह अपने मित्र वसुदेव के साथ कराया था ।

कंस बहुत ही अत्याचारी राजा था। जब वह अपनी बहन देवकी को विवाह के बाद रथ पर उसे उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा था तब एक आकाशवाणी हुई : ‘ जिस बहन को तुम इतने प्यार से विदा कर रहे हो, उसकी आठवीं संतान तुम्हारी मौत का कारण बनेगी ‘। इस आकाशवाणी को सुनकर कंस घबरा गया था।

उसने अपनी बहन और उसके पति को कारागार में बंद कर दिया। देवकी के सात पुत्र हुए लेकिन कंस ने उन्हें एक-एक कर के निर्दयतापूर्वक मार दिया। जब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तब कारागार के सारे पहरेदार सोये हुए थे। वसुदेव अपने बच्चे को पास ही के गाँव गोकुल के नन्द बाबा के घर छोड़ आये और उनकी लडकी को लेकर लौट आये।

जब सुबह हुई तो वासुदेव ने उस कन्या को कंस को सौंप दिया । कंस ने जैसे ही मारने के लिए उसे पत्थर पर पटका तो वह लडकी उडकर आकाश में चली गई और जाते-जाते उसने कहा कि तुझे मारने वाला अभी जीवित है और वह गोकुल पहुंच चुका है। इस आकाशवाणी को सुनकर कंस बहुत परेशान हुआ।उसने कृष्ण को मारने के लिए बहुत प्रयत्न किये। उसने बहुत से राक्षसों को जैसे – पूतना , बकासुर आदि को कृष्ण को मरने के लिए भेजा लेकिन कोई भी कृष्ण को मार नहीं पाया। श्रीकृष्ण ने सभी की हत्या कर दी । कालान्तर में कंस स्वयं काल का ग्रास बन गया और श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त कराया।बाद में श्रीकृष्ण ने अपना बालपन नन्द बाबा और यशोदा मैया के यहाँ ही बिताया।

जन्माष्टमी कई जगह अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है। जन्माष्टमी के पर्व पर झाकियों के रूप में श्रीकृष्ण के मोहक स्वरूप देखने को मिलते है। मंदिरो को इस दिन खूब सजाया जाता है और कई लोग इस दिन व्रत भी रखते है। जन्माष्टमी के दिन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को झूले में झुलाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल लोग अपने घरों को साफ करके मन्दिरों में धूप और दीये जलाते हैं । इस दिन लोग उपवास भी रखते हैं । मन्दिरों में सुबह से ही कीर्तन,भजन, पूजा पाठ, यज्ञ, वेदपाठ, कृष्ण-लीललाएं आदि प्रारम्भ होती हैं ।जन्माष्टमी पर प्रायः मन्दिर चार-पांच दिन पहले से ही सजने प्रारम्भ हो जाते हैं । इस दिन मन्दिरों की शोभा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है । बिजली से जलने वाले रंगीन बल्बों से मन्दिरों को सजाया जाता है ।

श्रीकृष्ण को माखन दूध,दही काफी पसन्द था जिसकी वजह से ऐसा कहा जाता है कि वे पूरे गांव का माखन चोरी करके खा जाते थे। एक दिन उन्हें माखन-चोरी करने से रोकने के लिए उनकी मां यशोदा को उन्हें एक खंभे से बांधना पड़ा और इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण का नाम ‘माखन-चोर’ भी पड़ा।

वृन्दावन में महिलाओं ने मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया जिससे कि श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके, लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई । माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक-दूसरे के कंधे पर चढ़कर योजना बनाई और साथ मिलकर ऊंचाई में लटकाई मटकी से दही और माखन चुरा लिया। वही से प्रेरित होकर ‘दही-हांडी’ का खेल शुरू हुआ ।

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम और माधुर्य के प्रतीक हैं। ऐसे जननायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में मनाया जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव तो मनाया ही जाता है, इस दिन व्रत रखने का अपना महत्व है। मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत रखने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जैसा कि पहले खा जा चुका है कि इस दिन सभी मंदिरों का श्रंगार किया जाता है। घर-घर में झूला और श्रीकृष्ण की झांकी सजाई जाती है। रात को बारह बजे श्री कृष्ण का जन्म होते ही शंख और घंटों की आवाज से सारे मंदिरों और सकल दिशाओं में श्री कृष्ण के जन्म की सूचना से दिशाएं गूंज उठती हैं। इसके बाद भगवान कृष्ण को झूला झुलाकर आरती की जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही व्रत खोला जाता है।

मन्दिरों में देवकी-वसुदेव-कारागार और कृष्ण हिण्डोला आदि झांकियां विशेष आकर्षण के केन्द्र होती हैं । सभी भक्तगण हिण्डोले में रखी कृष्ण प्रतिमा को झुलाकर जाते हैं । श्रीकृष्ण के जन्म-स्थल मथुरा और वृन्दावन में मन्दिरों की शोभा अद्वितीय होती है । भक्तगणों का सुबह से तांता लगा रहता है । जो अर्धरात्रि तक थामे नहीं थमता ।

श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में ऐसे गुण थे, जिसके कारण वे हिन्दुओं के महानायक बने ।उन्होंने गरीब मित्र सुदामा से मित्रता निभाई, दुराचारी शिशुपाल का वध किया, पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आने वाले अतिथियों के पैर धोए और जूठी पत्तलें उठाईं, महाभारत के युद्ध में अपने स्वजनों को देखकर विमुख अर्जुन को आत्मा की अमरता का संदेश दिया, जो हिन्दुओं का धार्मिक ग्रंथ ‘श्रीमद्‌भगवतगीता’ बना ।

यही ग्रंथ आज हमारे देश की सांस्कृतिक और दार्शनिक परम्परा की आधारशिला है।उन्हीं श्रीकृष्ण की प्रशंसा में ‘भगवत् पुराण’ समेत अनेक नाटक और लोकगीत लिखे गए हैं जो आज भी मन्दिरों में गाये जाते हैं ।कविवर सूरदास ने प्रभु श्रीकृष्ण कि स्तुति में और उनके बाल-वर्णन में जो सुंदर पद रचे हैं वे विश्व-साहित्य की अनूठी धरोहर है ।

प्रभु श्रीकृष्ण का चरित्र हमें लौकिक और आध्यात्मिक शिक्षा देता है । गीता में उन्होंने स्वयं कहा है कि व्यक्ति को मात्र कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए ।‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ अर्थात श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि हे मनुष्य! तेरा अधिकार कर्म करने पर ही है, उसके फल पर नहीं।इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं?

अंत में,जब-जब संसार में कष्ट ,पाप, अनाचार और भ्रष्टाचार बढ़ता है तब-तब उसे खत्म करने के लिए कोई-न-कोई बड़ी शक्ति या महापुरुष भी जरुर जन्म लेता है जो पाप और पापी का नाश करता है।कृष्ण जन्माष्टमी पर हमें यह संकल्प करना चाहिए कि हम हमेशा सत्कर्म करते रहें और दीन-दुखियों की तनमन से सेवा करें ।