Friday, July 28, 2023



फेक न्यूज़ यानी झूठी खबरें, गलत जानकारी। जबसे इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया आया है तबसे झूठी खबरों या झूठे और भ्रामक वीडियो के प्रचार-प्रसार ने विकराल रूप धारण कर लिया है. यों तो फेक न्यूज़ के विरुद्ध हमारे देश में कानून मौजूद हैं, लेकिन उन्हें और सख्ती से लागू करने की ज़रूरत है। तेज़ी से विकसित होते ऑनलाइन मीडिया परिदृश्य को कण्ट्रोल में रखने के लिए कानूनों को अद्यतन करते रहने की भी आवश्यकता है।

इन दिनों असामाजिक तत्वों द्वारा ‘फेक न्यूज़’ यानी सच्चे-झूठे वीडियो और समाचारों को समाज में विषक्त्ता, अशांति और उन्माद फैलाने की गरज़ से वायरल करने की होड़-सी मची हुयी है। क्या सही है और क्या ग़लत, यह निर्णय कर पाना मुश्किल है।सोशल मीडिया पर डाली गयी ऐसी विवादित,भ्रामक और उत्तेजक सामग्री की पड़ताल के लिए आचार-संहिता को और कठोर बनाने की ज़रूरत है।
एक ऐसा सेल/प्रकोष्ठ बनाया जाय जो हमारे देश में नफ़रत, वैमनस्य और जातिगत विद्वेष फैलाने के लिए उत्तेजनापूर्ण भाषण देते हैं या फिर ग़लत तरीके से बनाये गए वीडियो क्लिप्स इंटरनेट पर उपलोड करते हैं, उन पर कड़ी नजर राखी जाय और पकड़े जाने पर कठोर दंड दिया जाय । अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में देश में बड़ा अनर्थ हो रहा है और कोई कुछ भी बोल/लिख देता है या नेट पर कुछ भी डाल देता है।इससे दूसरों को भी अनर्गल बोलने की शह मिलती है।अभी हाल ही मैं मणिपुर में हुयी वीभत्स घटना के वीडियो ने कैसे समूचे देश को हिला कर रख दिया,उसके दुष्प्रभाव से देश अभी तक भी उबर नहीं पा रहा.इस दुष्प्रेचार में संलग्न समाज कंटकों को नाथने का इंतजाम होना चाहिए अन्यथा विकास का हमारा सपना धरा रह जायेगा.

दरअसल, फेक न्यूज़ का प्रसार आसान इसलिए हो जाता है, क्योंकि लोगों के पास प्रायः समाचार-स्रोतों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने का कोई कारगर उपाय या कौशल नहीं है।राजनीतिक उद्देश्यों के लिये, विशेषकर चुनावों के दौरान, प्रायः फेक न्यूज़ का धडल्ले से उपयोग किया जाता है। राजनीतिक दल जनमत को प्रभावित करने के लिये फेक न्यूज़ का उपयोग करते हैं.ऎसी खबरों के प्रसार को नियंत्रित करना असम्भव नहीं तो चुनौतीपूर्ण अवश्य है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तेज़ी से सार्वजनिक विमर्श का आधार बनते जा रहे हैं, जिन पर मुट्ठी भर लोगों अथवा घरानों का अत्यधिक नियंत्रण है। फेक न्यूज़ का मुकाबला करने के लिये शिक्षा और जागरूकता अनिवार्य हैं। लोगों को यह सिखाया जाना चाहिये कि स्रोतों को कैसे सत्यापित किया जाए, तथ्य-परीक्षण कैसे किया जाए और विश्वसनीय-अविश्वसनीय समाचार-स्रोतों के बीच के अंतर को कैसे समझें।पत्रकारों को नैतिक मानकों का पालन करने और अपनी रिपोर्टिंग के लिये जवाबदेह होने की आवश्यकता है। मीडिया संगठन ज़िम्मेदार पत्रकारिता और तथ्य-परीक्षण को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।

अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में देश में बड़ा अनर्थ हो रहा है और कोई कुछ भी बोल/लिख रहा है।इससे दूसरों को भी अनर्गल बोलने की शह मिलती

देश इन दिनों फेक न्यूज की विकराल समस्या का सामना कर रहा है। फेक न्यूज के चक्र को समझने से पहले मिसइन्फोर्मेशन और डिसइन्फोर्मेशन में अंतर समझना जरूरी है। मिसइन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना जो असत्य है, पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है। वहीं डिसइन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है फिर भी वह फैला रहा है।

एक तरफ वे भोले लोग जो इंटरनेट के प्रथम उपभोक्ता बने हैं और वहां जो भी सामाग्री मिल रही है वे उसकी सत्यता जाने समझे बिना उसे आगे बढ़ा देते हैं। दूसरी तरफ विभिन्न राजनीतिक दलों के साइबर सेल के समझदार लोग उन झूठी सूचनाओं को यह जानते हुए भी कि वे गलत या संदर्भ से कटी हुई हैं, इस मकसद से फैलाते हैं ताकि अपने पक्ष में लोगों को संगठित किया जा सके। फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं या बनाई हुई सामग्री। अक्सर झूठे संदर्भ को आधार बना कर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं।

इंटरनेट ने खबर पाने के पुराने तरीके को बदल दिया। पहले पत्रकार खुद किसी खबर की तह में जाकर सच्चाई पता करता था और तस्दीक कर लेने के बाद ही उसे पाठकों तक प्रेषित किया जाता था। आज इंटरनेट ने गति के कारण खबर पाने के इस तरीके को बदल दिया है। इंटरनेट पर जो कुछ है वह सच ही हो ऐसा जरूरी नहीं, इसलिए अपनी सामान्य समझ का इस्तेमाल जरूरी है।

अनुभव यह बताता है कि 90 प्रतिशत वीडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत संदर्भ में पेश किया जाता है। किसी भी वीडियो की जांच करने के लिए उसे ध्यान से बार-बार देखा जाना चाहिए।

किसी भी वीडियो को समझने के लिए उसमें कुछ खास चीजों की तलाश करनी चाहिए जिससे उसके सत्य या सत्य होने की पुष्टि की जा सके। जैसे वीडियो में पोस्टर, बैनर, गाड़ियों की नंबर प्लेट फोन नंबर की तलाश की जानी चाहिए, जिससे गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके। किसी लैंडमार्क की तलाश की जाए, वीडियो में दिख रहे लोगों ने किस तरह के कपड़े पहने हैं, वे किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैं, उसे समझना चाहिए। किसी भी वीडियो और फोटो को देखने के बाद यह जरूर सोचें कि यह आपको किस मकसद से भेजा जा रहा है, महज जागरूकता या जानकारी के लिए या फिर भड़काने के लिए.