Sunday, September 26, 2021





‘आलोकपर्व’ के अक्तूबर 2019 के अंक में प्रकाशित श्री जिया-उस-सलाम के इंटरव्यू को ध्यान से पढ़ गया। दरअसल, दुबई आते समय यह अंक अपने दिल्ली के दो-तीन दिनों के प्रवास के दौरान मुझे किसी मित्र ने पढ़ने के लिए दिया था।

इस इंटरव्यू को कवर-स्टोरी के तौर पर छापा गया है। इंटरव्यू निःसंदेह विचारोत्तेजक तो है पर कुछ पाठकीय विमर्श (टीका-टिप्पणी) भी लाज़िमी है।

यह सही है कि पत्रकारिता का प्रयोजन पाठक, श्रोता और दर्शक को उसके आसपास घट रही शुभ-अशुभ घटनाओं से परिचित कराना होता है। ‘अशुभ’ को ही हर समय परोसते रहने को कुछ पत्रकार-बंधु बेलाग अथवा निडर पत्रकारिता की संज्ञा देते हैं। व्यवस्था अथवा सरकार की कमजोरियों, उसकी गलत नीतियों अथवा उसके गलत निर्णयों की समीक्षा तो होनी चाहिए मगर अच्छे कामों की प्रशंसा भी उतनी ही लाजिमी है। मगर जिसकी फितरत ही टांग खींचने की हो, वह शख्स ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की दुहाई देकर अपने दायित्वबोध से विमुक्त नहीं हो सकता। यह बताने कि जरूरत नहीं कि ऐसे पत्रकार सज्जन अपने किसी पूर्वाग्रह के तहत ऐसा कर रहे होते हैं ।

नोटबंदी से आतंकवाद पर लगाम लगी कि नहीं यह जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि यह जानना कि नोटबंदी से कुल मिलाकर देश को कितना लाभ हुआ? सूत्र बताते हैं कि भारत में पहली बार वर्ष 1946 में 500, 1000, और दस हजार रुपये के नोटों की नोटबंदी की गई थी। जनवरी, 1978 में जब मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे, तब 1000, 5000, और 10000 के नोटों को पुनः बंद किया गया था। भारत में 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने भी 2005 से पहले के 500 के नोटों को बदलवा दिया था।

जब यूरोपियन यूनियन बना तब उन्होंने यूरो नाम की नई करेंसी चलाई थी तब सारे पुराने नोट बैंकों में जमा करवाए गये थे। यूरोप में हुई इस नोटबंदी ने यूरोप में बवाल मचा दिया था। जिम्बाब्वे में भी महंगाई से बचने के लिए 2015 में नोटबंदी का प्रयोग किया गया था।गर्ज़ यह कि नोटबंदी कोई नया प्रयोग नहीं है। कई देशों ने अपनी माली हालत सुधारने के लिए समय-समय पर ऐसे प्रयोग किया हैं। इतना जरूर है कि भारत में पहले भी नोटबंदी हुई थी परंतु वह इतने विवाद का विषय नहीं बनी।

इस में कोई संदेह नहीं कि भ्रष्टाचार को रोकना, कालाधन समाप्त करना, नकली-नोट बंद करना, मंहगाई रोकना और आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाने के लिए ही नोटबंदी का उपयोग किया जाता है। देश में कई देश-विरोधी ताकते होटी हैं। वे काले धन को छुपाकर रखते हैं। इसी धन को आतंकवादी गतविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है।देश में हुई नोटबंदी के कारण भ्रष्टाचारियों को अपना छिपाया हुआ काला धन सरकार को समर्पित करना पड़ा, कई लोगों ने इन्हें जला दिया और कइयों ने तो नदी या नाले में फेंक दिया।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की नोटबंदी की घोषणा को विपक्ष ने असफलता और देश के पिछड़ने की वजह बताया लेकिन प्रधानमंत्री जी अपने फैसले पर अड़े रहे। विपक्षी इस तरह से नोटबंदी का विरोध कर रहा था मानो उन्होंने अपने पास बहुत सारा काला धन छुपा कर रखा हुआ हो। सरकार अपने फैसले पर कायम रही और लोगों से संयम बरतने की अपील की।

सभी जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर नोटबंदी की हानियाँ हैं तो कुछ फायदे भी हैं। नोटबंदी नहीं होती तो भारत में कभी भी आर्थिक जागरूकता नहीं फैलती। नोटबंदी के बाद अब प्रायः सभी लोग ऑनलाईन/डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं। यहाँ तक की चायवाला, ढाबेवाले आदि अब ऑनलाईन भुगतान करवाते हैं । यह नोटबंदी की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

इसी के साथ नोटबंदी की वजह से नकली नोट छापने का काम भी बंद हो गया है जिसकी वजह से देश से नकली नोटों की बहुत बड़ी मात्रा बेमानी हो गई है। नोटबंदी की वजह से ही कश्मीर का मुद्दा कुछ समय के लिए शांत भी हो गया। पत्थरबाज़ों में काले धन का बंटना बंद हो गया। चाहे कोई माने या न माने नोटबंदी ने कश्मीर में आतंकवाद की कमर अवश्य तोड़ डाली है। कुछ तो सुरक्षा बलों की एक्स्ट्रा मुस्तैदी ने तोड़ी और कुछ ईडी के छापों ने। जिनको ये बातें नहीं माननी वे कभी नहीं मानेंगे!

अंत में एक बात का उल्लेख यहाँ पर करना जरूरी है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के फायदे भी अब सामने आने लगे हैं। लगभग तीन दशक पूर्व जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर श्री जगमोहन ने उस समय के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को अनुच्छेद 370 के बारे में आगाह किया था कि संविधान में जोड़ा गया यह अनुच्छेद घाटी में अमीरों/ सत्ताधीशों के हितों की रक्षा अधिक करता है और गरीबों के हितों की अनदेखी ज़्यादा करता है। इसी लिए प्रदेश के सत्ता और धन-लोलुप राजनेता और नौकरशाह इसे हटाने के पक्ष में कतई नहीं हैं। अब जैसे ही अनुच्छेद 370 हट गया तो सारे ऊंट पहाड़ के नीचे आ गए।

रोशनी एक्ट इस बात का गवाह है कि कैसे इस एक्ट की आड़ में कश्मीर के हुक्मरान,सत्ताधीश, मठाधीश और धनाधीश सरकारी ख़ज़ाने में सेंधमारी कर रहे थे और गरीबों का हक छीन रहे थे! आगे और भी कई सारे दुष्कर्म सामने आएंगे इन सत्ताधीशों के। कुल मिलाकर सत्ता पर जब तक ये भद्रजन काबिज़ रहते हैं तो सब ठीक होता है और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होता है। सत्ता छिन जाते ही ये भद्रजन छाती कूटने लगते हैं और विखंडन की बातें करने लगते हैं। यही हाल चाटुकार नौकरशाहों और मीडिया/पत्रकारों का भी है।