Monday, September 7, 2020



हिंदी का अखिल भारतीय स्वरूप.
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमारे देश के नेताओं, विचारकों और हित-चिंतकों ने एक सपना देखा था कि एक राष्ट्गीत, एक राष्ट्रध्वज आदि की तरह ही इस देश की एक राष्ट्रभाषा हो ! संविधान-निर्माताओं ने हिन्दी को राष्ट्भाषा का दर्जा भी दिया। मगर हम सभी जानते हैं कि यह सब होते हुए भी, लगभग 63 वर्ष बीत जाने के बाद भी, हिन्दी को अभी तक अखिल भारतीय भाषा, जिसे हम कभी-कभी सम्पर्क-भाषा भी कहते हैं, का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है और इसके लिए उसे बराबर संघर्ष करना पड़ रहा है। इस गतिरोध का आखिर कारण क्या है? क्या भारत की जनता को एक भाषा, एक राष्ट्र' वाली बात में अब कोई दिलचस्पी नही रही, क्या सरकार या व्यवस्था की नज़र में राष्ट्रभाषा की अस्मिता का प्रश्न महज फाईलों तक सीमित रह गया है, क्या हमारे हिन्दी प्रेमियों एवं हिन्दी सेवियों को कहीं किसी उदासीनता के भाव ने घेर लिया है, आदि कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तरों की तलाश हमें करनी होगी यह सब मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि पूरे 6 दशक बीत गये हैं और हम हिन्दी को अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानजनक स्थान दिलाने में पूरी तरह से कामयाब नहीं हुए हैं। हिन्दी के सेवा-कार्य, लेखन कार्य तथा अध्ययन-अध्यापन कार्य से मैं पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से जुडा हुआ हूँ। मेरे जेहन में कई बातें उभर रही हैं जो हिन्दी को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने में बाधक सिद्ध हो रही हैं बातें कई हैं, मगर मैं यहां पर अपनी बात मात्र एक विशेष मुद्दे तक ही सीमित रखूंगा। किसी भी भाषा का विस्तार या उसकी लोकप्रियता या उसका वर्चस्व तब तक नहीं बढ़ सकता जब तक कि उसे 'ज़रूरत' यानि 'आवश्यकता से नही जोड़ा जाता। यह 'ज़रूरत' अपने आप उसे विस्तार देती है और लोकप्रिय बना देती है। हिन्दी को इस जरूरत' से जोड़ने की आवश्यकता है। मुझे यह कहना कोई अच्छा नहीं लग रहा और सचमुच कहने में तकलीफ भी हो रही है कि हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी' ने अपने को इस जरूरत से हर तरीके से जोडा है। जिस निष्ठा और गति से हिन्दी और गैर-हिन्दी प्रदेशों में हिन्दी प्रचार-प्रसार का कार्य हो रहा है, उससे दुगुनी रफतार से अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान-विज्ञान के नये नये क्षितिज उदघारित हो रहे हैं जिनसे परिचित हो जाना आज हर व्यक्ति के लिए लाजिमी हो गया है। मेरे इस कथन से यह अर्थ कदापि न निकाला जाए कि मैं अंग्रेजी की वकालत कर रहा हूँ। नहीं, बिल्कुल नहीं। मैं सिर्फ यह रेखांकित करना चाहता हूं कि अंग्रेजी ने अपने को जरूरत से जोड़ा है। अपने को मौलिक चिंतन, मौलिक अनुसंधान व सोच तथा ज्ञान-विज्ञान के अथाह भण्डार की संवाहिका बनाया है जिसकी वजह से पूरे विश्व में आज उसका वर्चस्व अथवा दबदबा है। हिन्दी अभी जरूरत' की भाषा नहीं बन पाई है आज हमें इसका जवाब ढूंढना होगा कि क्या कारण है अब तक उच्च अध्ययन, खासतौर पर विज्ञान और तकनालॉजी, चिकित्साशास्त्र आदि के अध्ययन के लिए हम स्तरीय पुस्तकें तैयार नहीं कर सके हैं । क्या कारण है कि सी0डी०एस0 और एन0डी०ए0 चउडपदमक कममिदवम "मतअपवमेद्ध प्रतियोगिताओं के लिए हिन्दी को एक विषय के रूप में सम्मिलित नहीं करा सके हैं। व्या कारण है कि उंदा वीपिवमते की प्रतियोगी परीक्षा में अंग्रेजी एक विषय है, हिन्दी नहीं है। ऐसी अनेक बातें हैं जिनका उल्लेख किया जा सकता है। यह सब क्यों हो रहा है अनायास हो रहा है या जानबूझकर किया जा रहा है, इन बातों पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। मैं यह रेखांकित करना चाहता हूं कि मेरी बातों से कदापि यह निष्कर्ष न निकाला जाए कि हिन्दी के सुन्दर भविष्य के बारे में मुझ में कोई निराशा है। नहीं, ऐसी बात नहीं है। उसका भविष्य उज्ज्वल है। वह धीरे-धीरे अखिल भारतीय स्वरूप ले रही हे। मगर इसके लिए हम हिन्दी प्रेमियों को अभी बहुत काम करना है। एकजुट होकर युद्ध स्तर पर राष्ट्रभाषा हिन्दी की स्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना है। यहां पर मै जोर देकर कहना चाहूंगा कि हिन्दी प्रचार-प्रसार या उसे अखिल भारतीय स्वरूप देने का मतलब हिन्दी के विद्वानों,लेखकों,कवियों या अध्यापकों की जगात तैयार कना नहीं है। जो हिन्दी से सीधे-सीधे आजीविका या अन्य तरीकों से जुडे हुए हैं, वे तो हिन्दी के अनुयायी हैं ही। यह उनका धर्म है, उनका नैतिक कर्तव्य है कि वे हिन्दी का पक्ष लें। मैं बात कर रहा हं ऐसे हेती ततारण को तैरार करने की जिसमें भारत देश के किसी भी भाषा-क्षेत्र का किसान, मजदूर, रेल में सफर करने वाला हर यात्री, अलग अलग काम-धन्धों से जुड़ा आम-जन हिन्दी समझे और बोलने का प्रयास करे। टूटी-फूटी हिन्दी ही बोले, मगर बोले तो सही। यहां पर मैं दूरदर्शन और सिनेमा के योगदान का उल्लेख करना चाहूंगा जिसने हिन्दी को पूरे देश में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुछ वर्ष पूर्व जब दूरदर्शन पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ सीरियल प्रसारित हुए तो समाचार पत्रों के माध्यम से सुनने को मिला कि दक्षिण भारत के कतिपय अहिन्दी भाषी अंचलों में रहने वाले लोगों ने इन दो सीरियलों को बड़े चाव से देखा क्योंकि भारतीय संस्कृति के इन दो अद्भुत महाकाव्यों को देखना उनकी भावनागत जरूरत बन गई थी और इस तरह अनजाने में ही उन्होंने हिन्दी सीखने का उपक्रम भी किया। हम ऐसा ही एक सहज सुन्दर और सौमनस्यपूर्ण माहौल बनाना चाहते हैं जिसमें हिन्दी एक ज़रूरत बने और उसे जन-जन की वाणी बनने का गौरव उसे प्राप्त हो।

Friday, July 31, 2020

शीतलेश्वरम शीतलनाथः वन्दे अहं भैरवं सदा।
(मैं शीतलेश्वर भैरव शीतलनाथ की सदा-सर्वदा वंदना करता हूँ।)
जी हां,यह सूक्त 'नीलमनपुरण' का है जिसमें श्रीनगर/कश्मीर के प्रसिद्ध मंदिर शीतलनाथ की महिमा का वर्णन है।कश्मीरी पंडितों की आस्था,अस्मिता और गौरवशाली अतीत का प्रतीक है 'शीतलनाथ'।बचपन में मित्रों के साथ इस धार्मिक स्थल को देखने का कई बार सुअवसर मिला है मुझे।
5 अगस्त,20 को अयोध्या में राम-मंदिर के भूमि -पूजन के अवसर पर कश्मीर के प्राचीन गौरवशाली मंदिर शीतलनाथ की पुण्य-भूमि के रजकण भी अयोध्या की माटी के साथ मिल जाएंगे।
1990 में कश्मीरी पंडितों के घाटी से निष्कासन के बाद देवभूमि कश्मीर के अधिकांश मन्दिर और धार्मिक स्थल जर्जर अवस्था में ही रहे।कुछेक की सुरक्षा का ज़िम्मा सरकार ने अवश्य लिया अन्यथा बाकी वीरान ही पड़े रहे।
गत वर्ष पण्डितों के बलिदान-दिवस यानी 14 सितम्बर 2019 को जहां देश-विदेश में कश्मीरी पंडित समुदाय ने विस्थापन के दौरान शहीद हुए पण्डितों को जगह-जगह भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की,वहां जम्मू कश्मीर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और कश्मीर मामलों के जानकार एवं प्रवक्ता श्री अश्विनी चरंगुजी ने अपने सहयोगियों सहित कश्मीर जाकर शीतलनाथ मन्दिर में दिवंगत शहीदों को न केवल भावांजलि अर्पित की अपितु यह निर्णय लिया कि शहीद हुए कश्मीरी पंडितों के शीतलनाथ परिसर में भव्य स्मारक बनेंगे ताकि आने वाली पीढियां इन शहीदों के बलिबान को याद रखे।
यहाँ पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि 'शीतलनाथ' का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है।सुना है शीतलनाथ के मंच से पंडित जवाहरलाल नेहरू,महात्मा गांधी,बलराज मधोक आदि जैसे राजनेताओं ने कश्मीरियों को संबोधित किया है।यों,शीतलनाथ हमेशा ही कश्मीर में पण्डितों की अभिव्यक्ति का सशक्त मंच और माध्यम रहा है।
अपने समय का प्रसिद्ध और चर्चित"हिन्दू हाई स्कूल"शीतलनाथ परिसर में ही चलता था।इस स्कूल ने कश्मीर और देश को बड़े-बड़े प्रतिभाशालीडॉक्टर,इंजीनियर,बुद्धिजीवी,सामाजिक कार्यकर्ता आदि दिए हैं।मुझे याद है किसी ज़माने में कश्मीरी पंडितों की आवाज़ का प्रतीक 'मार्तण्ड' अखबार भी शीतलनाथ से ही निकलता था।पण्डितों के अनेकानेक धार्मिक उत्सव,जलसे,समारोह आदि इसी परिसर में होते थे। कश्मीरी पंडितों के नेता हरगोपाल कौल, जिया लाल किलम, कश्यप बंधु, शिव नारायण फोतेदार, टीकलाल टपलू, अमरनाथ गंझू, शंभू नाथ पेशिन, अमरनाथ वैष्णवी और हृदयनाथ जत्तू जैसे महान लोग महत्वपूर्ण अवसरों पर कश्मीरी पंडित समुदाय को इसी शीतलनाथ-परिसर के मंच से संबोधित करते थे
जाता है कि महात्मा गांधी ने 1947 में कश्मीर में जो भाषण दिया था और जिसमें उन्होंने कहा थे कि "मुझे कश्मीर में आशा की किरण दिखाई दे रही है जबकि सारा देश साम्प्रदायिक आग में जल रहा है" वह भाषण उन्होंने शीतलनाथ की पुण्य भूमि से ही दिया था।
इसी पुण्य भूमि के रजकण कश्मीरी पंडित नेता श्री अश्वीनी कुमार चरंगू के प्रयासों से अयोध्या में राम-मंदिर के भूमि-पूजन के अवसर पर अयोध्या भिजवाये जा रहे हैं।।

Wednesday, May 13, 2020



श्रीनगर (कश्मीर(के पूर्व में लगभग चौदह किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा-सा गांव बसा हुआ है तुलमुल| यहीं पर जगदम्बा माता क्षीर-भवानी का वह सुरम्य मंदिर/ तीर्थ है जो प्राचीनकाल से श्रद्धालुओं और भक्तजनों के लिए आस्था का केंद्र बन हुआ है | श्रीनगर से तुलमुल तीर्थ-स्थान तक जाने के लिए पहले के समय में प्राय: लोग तीन मार्गों का उपयोग करते रहे हैं | एक सड़क से, दूसरा वितस्ता या झेलम नदी से तथा तीसरा पैदल रास्ते से | आजकल अधिकांशतः लोग बस, मोटर कार, दुपहिये वाहनों आदि में बैठकर ही यह तीर्थ करते हैं|

‘तुल’ कश्मीरी में तूत को कहते हैं तथा ‘मुल’ पेड़’ या जड़ को | इस प्रकार ‘तुलमुल’ का अर्थ तूत का पेड़ हो जाता है | कहते हैं, जिस चश्में में इस समय जगदम्बा (महाराज्ञी) का वास समझा जाता है, वहाँ पर आज से कई सौ वर्ष पूर्व तूत का एक बड़ा पेड़ विद्यमान था तथा लोग चश्में में उसी पेड़ को महाराज्ञी का प्रतिरूप मानकर पूजा करते थे | इसीलिए इस तीर्थस्थान को ‘तुलमुल’ कहा जाता है|

क्षीर भवानी तीर्थ के सम्बन्ध में मिथकों से जो जानकारी प्राप्त होती है, उसके अनुसार लंकापति रावण को अपूर्व शक्ति प्राप्त करने का वरदान जगदम्बा से ही प्राप्त हुआ था | किंतु जब रावण सीता का हरण कर रामचद्रजी के साथ युद्ध करने पर आमादा हो गये तो महाराज्ञी जगदम्बा रुष्ट हुई | इन्होंने हनुमान को तत्काल यह आदेश दिया कि वे इनको ‘कश्यपमर’/कश्मीर ले जाएँ क्योंकि रावण के पिता पुलस्त्य उस समय कश्मीर में ही रहा करते थे | हनुमान ने आदेश का पालन किया तथा कश्मीर के पश्चिम के एक दूरवर्ती गांव ‘मंजगांव’ में देवी की स्थापना की परन्तु यह स्थान देवी को भाया नहीं और बाद में हनुमान ने देवी की स्थापना ‘तुलमुल;’ गांव में की | यहाँ देवी का नाम ‘क्षीर-भवानी’ पड़ा क्योंकि इनका भोग केवल मिष्टान एवं क्षीर से ही होने लगा | कल्हणकृत राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर का प्रत्येक राजा इस तीर्थ स्थान पर जाकर जगदम्बा महाराज्ञी के प्रति अपनी श्रद्धा के फूल अर्पित करता था | किंवदन्ती यह भी है कि भगवान राम बनवास के दौरान कई वर्षों तक माता जगदम्बा देवी की पूजा करते रहे और बनवास के बाद हनुमान से कहा कि वह माता के लिए उनका मनपसंद स्थान तलाश करे|इस प्रकार माता ने कश्मीर का चयन किया और हनुमान ने उनकी स्थापना ‘तोला मोला’अथवा तुलमुल में की|

देवी का वर्तमान जलकुण्ड ६० फुट लम्बा है | इसकी आकृति शारदा लिपि में लिखित ओंकार जैसी है | जलकुण्ड के जल का रंग बदलता रहता है जो इसकी रहस्यमयता/दिव्यता का प्रतीक है | इसमें प्राय: गुलाबी, दूधिया, हरा आदि रंग दिखायी देते हैं जो सुख-शान्ति तथा देश-कल्याण के सूचक माने जाते हैं | कला रंग अपशकुन माना जाता है | मंदिर के पुजारियों का विश्वास कि चश्मे का पानी अगर साफ़ हो तो सबके लिए अच्छा शगुन है और वह साल भी अच्छा बीतता है किन्तु अगर पानी गंदला या मटमैला हो तो कश्मीर-वासियों के लिए मुश्किलें, यात्राकष्ट और परेशानी का दुर्योग बनता है|कहा जाता है 1990 में चश्मे का पानी काला हो गया था, मानो उसमें धुआं मिलाया गया हो| तब कुछ ही महीनों के बाद पंडितों को घाटी छोड़ कर जाना पड़ा था| जलकुण्ड के बीच में जगदम्बा महाराज्ञी का एक छोटा-सा किन्तु भव्य मंदिर विद्यमान है | आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यहाँ कोई मंदिर नहीं था | वर्तमान मंदिर का निर्माण डोगरा शासकों के सत्प्रयास से हुआ है| यह मंदिर भारतीय वास्तुकला के आधार पर बनाया गया है | मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है | कुण्ड के सामने लगे जंगले के बाहर लोग देवी के दर्शन करते हैं |

इस तीर्थ के दर्शन करने युगों-युगों से कई योगी तथामहापुरुष कश्मीर आये हैं | कहते हैं कि रावण को जब इस बात का पता चला कि महाराज्ञी उसके दुर्व्यवहार से रुष्ट हो गयी है तो वे क्षमायाचना के लिए यहाँ आये किन्तु तब तक महाराज्ञी जलकुण्ड में ही समा गयी थी|राजतरंगगिणी के कई तरंगों में हमें भारत से आये कई योगीजनों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने इस तीर्थ पर आकर महाराज्ञी के प्रति अपनी श्रद्धा के फूल अर्पित किये | कल्हण ने इस तीर्थ को कश्मीर की काशी कहा है | सन १८६८ ई में जब स्वामी विवेकानन्द कश्मीर आये तो इन्होंने अपनी यात्रा के अधिकांश दिन महाराज्ञी के चरणों में व्यतीत किये | यहाँ पर वे भाव-समाधि में लीन हो जाते थे | अपनी कई रचनाओं में इन्होंने इस सुरम्य तीर्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है | इनकी विदेशी शिष्या भगिनी निवेदिता ने भी अपनी पुस्तकों में इसका उल्लेख किया है |



यों तो प्राय: प्रतिदिन महाराज्ञी के दर्शनार्थ देश के कोने-कोने से यात्रियों का तांता बंधा रहता है, किंतु प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यहाँ भक्तजन काफ़ी मात्रा में आते हैं | जयेष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी को, जो क्षीरभवानी के जन्म-दिवस के रूप में मनाया जाता है,यहाँ विशेष मेला भरता है| जलकुण्ड में अर्पित दूध तथा पुष्प आदि की सुगंध से मन में अपूर्व शान्ति का संचार होता है|देवी जगदम्बा के भजनकीर्तन रातभर चलते हैं |

इस मंदिर के बाहर सदियों से भाईचारे का माहौल देखने को मिलता है| मंदिर में चढ़ने वाली पूजा-अर्चना,दूध-मिश्री आदि सामग्री इलाके के स्थानीय मुस्लिम बिरादरी के लोग बेचते हैं जो भाईचारे का एक बहुत बड़ा उदाहरण है।सामग्री बेचने वाले शौकत का कहना है कि उनके वालिद साहब भी श्रधालुओं के लिए पूजा का सामान बेचने का काम करते थे।उनका कहना है कि हमारे बीच हिंदु-मुस्लिम वाली कोई बात थी नहीं| मगर क्या करें? वक्त खराब आया कि हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों को यहां से जाना पड़ा। उम्मीद है कि जल्द ही कश्मीर में फिर से कश्मीरी पंडित हम लोगों के साथ अपने पुराने घरों में रहने आ जाएंगे।यों,माना यह भी जाता है कि बाबा अमरनाथ के शिवलिंग का पता भी सब से पहले एक स्थानीय मुस्लिम गडरिये को ही चला था|

Saturday, May 9, 2020

समय की महिमा


समय को इस सृष्टि की सबसे अनुपम और बलवती वस्तु माना गया है। जब समय यानी वक्त बदलता है तो इंसान को राजा से रंक और रंक से राजा बना देता है। समय के कहर से बड़े-बड़े राजा-महाराजा तक घबराते हैं। कहा जाता है कि समय एक अच्छा चिकित्सक भी है। यह बड़े से बड़े घाव को भरने में सक्षम है। तभी तो कहते हैं: "जिन्दगी चार दिन की है, दो दिन आपके हक में और दो दिन आपके खिलाफ! जिस दिन हक में हों तो श्रीमान, गुरूर मत कीजिए। जिस दिन खिलाफ हों तो थोड़ा सब्र जरूर कीजिए क्योंकि समय बड़े से बड़ा घाव तक भर सकता है।“
यों, समय को सच्चाई के पिताश्री की संज्ञा भी दी गयी है क्योंकि समय सभी चीजों को परिपक्व कर देता है। दूसरे शब्दों में समय के साथ सभी चीजें उजागर हो जाती हैं । समय कुछ भी बदल सकता है पर किसी के लिए कभी रुकता नहीं है। कहते है "आदमी अच्छा या बुरा नहीं होता बल्कि उसका समय अच्छा और बुरा होता है। जब समय अच्छा चल रहा होता है तो सब काम अपने आप अच्छे हो जाते है, लेकिन खराब समय शुरू होने के बाद बनते काम भी बिगड़ने लगते है। समय को एक अच्छा अध्यापक भी माना गया है ।यह हमें हमेशा सिखाता रहता है। स्कूल में हमें सीखने के बाद परीक्षा देनी पड़ती है लेकिन समय हमारी पहले परीक्षा लेता है और फिर सिखाता है।
कहने का तात्पर्य है यह है कि समय महाबली है और वह ‘उचित-अनुचित’ की पूरी खबर रखता तथा समय आने पर ‘काल के कटघरे’ में सब को खड़ा कर देता है।अज्ञानी लोग काल की इस चाल को समझते नहीं हैं। जिस दिन समझने लगेंगे उस दिन से कोई भी बुरा काम नहीं करेंगे ।
ध्यान से विचार करें तो कॅरोना यानी कोविड-19 भी हम को एक संदेश देता है जिसे समझने की ज़रूरत है। यह संदेश एक तरह से समय की पुकार है।जिस तरह से मनुष्य ने प्रकृति का दोहन किया है,अपने आचार विचार बदले हैं,जीवन शैली बदली है,स्वस्थ मानसिकता को तिलांजलि दी है आदि उससे विक्षुब्ध हो कर समय अथवा काल सम्भवतः हम से प्रतिशोध ले रहा है।मानवता के लिए अच्छा सोचेंगे 'समय' भी हमारे लिए अच्छा सोचेगा।
शिबन कृष्ण रैणा

Tuesday, April 14, 2020



Prime Minister Narendra Modi in his address to the nation on 14th April announced that in the wake of challenges thrown by COVID-19, the nationwide lockdown will be extended till 3rd May 2020 to fight the coronavirus pandemic. India’s three-week lockdown was to end at midnight of 14th April,2020. 

In a half-hour televised address to the nation, Modi, however, held out hope that from next Monday, there will be phased relaxation of the lockdown in districts where COVID-19 cases have been contained or are of lesser magnitude. 

Modi asserted that India’s fight against the Corona global pandemic is moving ahead with great strength and steadfastness. While praising the citizens for their continued co-operation in fighting out this lethal virus, Modi with folded hands and profound modesty opined that it was only because of the people’s restraint, penance and sacrifice that, India has so far been able to avert major harm caused by Corona to a large extent. No doubt, people have endured immense suffering to save the country and thereby save India. On economic front lock-down undoubtedly may have looked as a costly measue; but measured against the lives of Indian citizens, this has no comparison. The path that India chose keeping in view its population and limited resources, has become a topic of discussion and appreciation in the entire world today. 

Mr. Modi in his address to the nation laid stress upon seven commandments to be followed by every citizen of the country. Among other things he exhorted the people to take special care of the elderly in their homes, especially those who have some chronic disease. ‘We have to take extra care of them and keep them safe from Coronavirus’ he stressed. 

While highlighting the need of social distancing, Prime-Minster urged his countrymen to take as much care of the poor families as one could. ‘Provide these poor and helpless with food and other requirements.’ Modi stressed. Again, the Prime-Minister made a fervent appeal to employers and factory-owners not to deprive their workers and employees of their livelihood. ‘Be compassionate towards the people who work with you in your business or industry etc.’ Lastly, pay utmost respect to our nation’s Corona Warriors: our doctors and nurses, sanitation workers and police force etc. 

“Friends, I urge you to follow the rules of lockdown with utmost sincerity until 3rd May. Stay wherever you are, Stay safe.” Modi appealed. 



















































Saturday, April 4, 2020


The diboalic Corona
The diabolic Corona virus is creating havoc all around the world. Nations hit by this pandemic have declared lockdowns to save the lives of their countrymen. Every human being under the sun is virtually imprisoned or caged and only birds are flying in the sky! 

Government of India is taking all necessary steps to ensure that we are prepared well to face the challenge and threat posed by the growing pandemic of COVID 19 – the Corona Virus. With active support of the people of India, we have been largely able to contain the spread of the Virus in our country. The most important factor in preventing the spread of the Virus locally is to empower the citizens with the right information and taking precautions as per the advisories being issued by Ministry of Health & Family Welfare. In these frightening and uncertain times, the utmost need of the hour is to abide by the directive issued by the competent authorities from time to time. Any breach can lead the entire country to untold misery. 

To abide by citizen-social-code to overpower this notorious Corona virus, following instructions need to be followed strictly and rigorously: Wash your hands with soap regularly and thoroughly. If possible clean your hands with an alcohol-based sanitizer. Wash them for at least 20 seconds every time. 

Practise social distancing. Social distancing is a form of infection prevention that involves avoiding contact between those who are already infected with a disease that could spread further. This measure could, eventually, lead to decrease in spread of the disease. Avoid going to public gatherings and crowded places. Maintain at least 3 feet distance while speaking to anyone who is coughing or sneezing. Avoid touching your face and eyes unnecessarily. In the course of the day, your hands touch various metal, steel, glass, wood and cloth surfaces. God forbid, if they were contaminated, your hands could transfer the virus to your eyes, nose or mouth. 

If you have fever, cough and difficulty in breathing, seek medical attention immediately. This will allow your doctor to quickly direct you to the right health facility. 

Last but not the least, If you have a travel history, stay at home. Watch if you begin to feel unwell, even with mild symptoms such as headache and slight runny nose, avoid contact with others and seek medical advice immediately. Timely medical care will help protect you and your family and thus make your precious life dear to you. 

Having said that staying at home for indefinite period under the constant threat of fatal Corona should be making life both monotonous and challenging. These are, however, testing times. The entire humanity is put to test and our endurance is at stake. Passing our time should not pose a problem at all. People are taking different measures to spend their time in the wake of these sudden and uncalled for lock downs.Reading books, listening to music, watching old/new movies, inquiring about the welfare of our friends and relatives more especially relatives belonging to older generation, playing cards and other indoor games can very well keep us engaged and eventually this Corona syndrome will pass off peacefully if not willingly and cheerfully. 

My grandson Shaurya is with me here in Alwar these days. He enjoys playing chess with me and thus both of us take care of each other to pass off the time so easily. Playing with him make me nostalgic and I go down to my memory lane when I used to play Chess so passionately and regularly with my own colleagues. Needless to say that during Eighties I used to be Secretary ‘Alwar District Chess Association.’ 

I must have played around twenty games with Shauriya during this lockdown period so far. He is convinced that his grandfather is by far superior to him in this Art. That is why he sometimes asks me so cutely and innocently that when would he be able to become a Chess-player like me? I simply pat him with a fond smile. Little does my grandson know that every game and for that matter every professional Art calls for a long-drawn-out practice and dedication, devotion and commitment. I am, however, confident that his passion for the game will surely make him a big player one day. God bless Shauriya. 







Wednesday, March 18, 2020



श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी है। ये शहर जेहलम नदी के किनारे पर बसा हुआ है, जो कि सिंधु नदी की एक सहायक नदी है। ये शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण अत्याधिक प्रसिद्ध है। श्रीनगर उत्तर में बसा भारत का एक बड़ा शहर है जिसकी आबादी 11 लाख के करीब बताई जाती है। 

श्रीनगर शहर को किसने और कब बसाया, इस पर दो मत हैं।कुछ विद्वान मानते हैं कि इस शहर को कश्मीर नरेश प्रवरसेन ने बसाया था और कुछ कहते हैं कि राजा अशोक ने इसे बसाया था। 12वीं सदी में कल्हण द्वारा लिखी राजतरंगिणी में श्रीनगर का उल्लेख मिलता है।श्रीनगर का शाब्दिक अर्थ है ‘सूर्य का नगर’ । ‘शोभा से युक्त नगर’ ‘धन का शहर’ आदि अर्थ भी निकल सकते हैं। 

कल्हण के ही अनुसार श्रीनगर की स्थापना 1182 ईसा-पूर्व अर्थात 3200 साल पहले अशोक नाम के राजा ने की थी। 

राजतरंगिणी में कल्हण ने यह भी लिखा है कि प्रवरसेन नाम के एक राजा ने ३२०० ईपू प्रवरपुरा शहर की स्थापना करके उसे अपनी राजधानी बनाया था। विवरणों से पता चलता है कि यह ‘प्रवरपुरा’ ही आज का श्रीनगर है।संभव है कि ‘प्रवरपुरा’ पहले से ही एक शहर रहा हो जिसे बाद में सम्राट अशोक ने और अच्छी तरह से बसाया हो। 

कल्हण का मानना है कि राजा प्रवरसेन की राधानी प्रवरपुरा से पहले पुराणाधिष्ठाना थी। माना जाता है कि ये पुराणाधिष्ठाना ‘पंद्रेथन’ है जो कि आज के श्रीनगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित था। इतिहासकार वी.ए. स्मिथ पंद्रेथान को पुराना श्रीनगर शहर मानते है जिसे बाद में प्रवरसेन ने दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया था। 

14वीं सदी तक श्रीनगर पर किसी ना किसी हिंदू या बौद्ध राजा का शासन रहा लेकिन इसके बाद यह शहर मुस्लिम शासकों के प्रभाव के अधीन आ गया। 1586 ईस्वी में अकबर ने पूरे कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया और श्रीनगर भी मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया।1707 में जब औरंगज़ेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा तो श्रीनगर पर अफगानों और डोगरों के हमले होने लगे। दोनों ने कुछ दशकों तक श्रीनगर पर राज किया। 

जब पंजाब में सिखों का दबदबा बढ़ने लगा, तो वो जम्मू और कश्मीर तक भी पहुँच गए। 1814 में महाराजा रणजीत सिंह ने श्रीनगर से अफगान राज को उखाड़ फेंका और ये शहर सिख साम्राज्य के अधीन आ गया। अगले 30 सालों तक इस शहर पर सिखों का राज रहा। 

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जब पहले अंग्रेज़-सिख युद्ध में सिख हार गए तो दोनों में लाहौर-संधि हुई। संधि में श्रीनगर सिखों से जाता रहा और अंग्रेज़ों ने इसे हिंदू डोगर राजा महाराजा गुलाब सिंह को सौंप दिया जो अंग्रेजों के अधीन थे। आज़ादी तक श्रीनगर पर इसी हिंदु डोगर वंश का राज रहा। 

भारत की आज़ादी के पश्चात जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था। अंग्रेज़ों के नियम के अनुसार कोई भी रियासत भारत से स्वतंत्र रह सकती थी। इसलिए इसके राजा हरिसिंह ने स्वतंत्र रहने की सोची। लेकिन पाकिस्तान और कुछ मुस्लिम कबीलों ने इनके राज्य पर हमला कर दिया। कई हिंदुओं को मार-काट दिया गया और महिलाओं से जो बर्बरता की उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। 

अपना सारा राज जाता देख महाराज हरिसिंह भारत में शामिल होने के लिए राजी हो गए। सरदार पटेल ने भारतीय फौजों को रवाना किया। पाकिस्तान और मुस्लिमों कबीलों ने कश्मीर के बड़े हिस्सा पर कब्ज़ा जमा लिया था। भारतीय फौज़ ने कब्जाए गए बड़े हिस्से से पाकिस्तानी फौज़ को खदेड़ डाला।भारतीय फौज़ पूरा कश्मीर खाली करवाने ही वाली थी कि मामला संयुक्त राष्ट्र में चला गया और अब तक ये मामला कमोबेश अधर में ही लटका हुआ पड़ा है। 

Monday, January 20, 2020



शाहीन बाग़ में जुड़े मजमे को संबोधित करने के लिए विभिन्न पार्टियों के नेताओं में होड़ मची हुयी है.कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर,शशिथरूर,दिग्विजयसिंह,सलमान खुर्शीद आदि इस मौके को हाथ से न जाने देने की गरज से भीड़ को उलटी-सीधी पट्टी पढ़ा चुके हैं और पढ़ा भी रहे हैं.सुना है दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून के विरोध में जारी धरने प्रदर्शन में रविवार को कुछ कश्मीरी पंडित भी पहुंचे. इन लोगों ने कहा कि वे नागरिकता क़ानून के समर्थन में हैं.ख़ास बात यह है कि इसी धरने में कश्मीरी पंडित और प्रसिद्ध रंगकर्मी एमके रैना भी पहुंचे. एमके रैना ने कहा कि शाहीन बाग़ में विरोध कर रहे लोगों को देखकर उन्हें उन दिनों की याद आती है जब कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म हुए थे. इसलिए वो धरने पर बैठे लोगों से हमदर्दी जताने के लिए आए हैं. दूसरे शब्दों में स्वनामधन्य रंगकर्मी एमके नागरिकता कानून और पंडितों पर जिहादियों द्वारा किये गये अत्याचार,उनके जबरन विस्थापन और उनके नरसंहार को एक ही तराजू से तौलते हैं. दोनों बातें परस्पर-विरोधी हैं.नागरिकता कानून पीड़ित शरणार्थियों को शरण देने से जुडा हुआ है और कश्मीरी पंडितों का मुद्दा पंडितों पर हुयी ज्यादतियों और घाटी से उन्हें जिहादियों द्वारा बेदर्दी से बेदखल करने से जुड़ा हुआ है. रंगकर्मी एमके या तो नागरिकता कानून को समझे नहीं हैं या फिर किसी पार्टी-विशेष के अजेंडा को चलाने की गरज से शाहीन बाग़ पहुंचे थे.

शाहीन बैग का मजमा राजनीतिक अखाड़ेबाजी का केंद्र बनता जा रहा है.खोयी हुयी सत्ता को पाने के लिए विपक्ष बेचैन है.अनुच्छेद ३७० हटा कोई प्रदर्शन नहीं,तीन-तलाक-बिल पास हुआ कोई हो-हल्ला नहीं,राम मंदिर बनने का निर्णय सरकार के पक्ष में गया तब भी कोई धरना-प्रदर्शन नहीं. अब इस नागरिकता के मुद्दे को विपक्ष भुनाने में लगी हई है.इसे किसी भी कीमत पर हाथ से निकलने नहीं देना चाहती.सरकार भी ढील शायद इसलिए दे रही है कि स्थिति शीघ्र ही सामान्य होगी क्योंकि नागरिकता कानून के बारे में जो भ्रम फैलाया जा रहा है वह दूर होते ही जनता इस कानून के अच्छे पक्ष को जान जाएगी.इसके लिए जनता में जागरूकता लाना आवश्यक है और इस बिल के बारे में सही जानकारी जनता तक पहुंचाना लाजिमी है.



समूचे देश में और ख़ास तौर पर शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन/आन्दोलन का एक दूसरा पक्ष भी है जिसे समझना बेहद ज़रूरी है.लोकसभा के 2019 के चुनाव-नतीजों ने उन ऐसे सभी मिथकों, अटकलों और अनिश्चितताओं पर पर्दा गिरा दिया जो मोदी की जीत को लेकर संदेह प्रकट कर रहे थे। साझा-विपक्ष द्वारा मोदी के विरुद्ध चिनौतीपूर्ण संघर्ष के बीच, मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।दरअसल, विपक्ष द्वारा 1914 में ‘चायवाला’ और 2019 में ‘चौकीदार चोर है’ के रूप में टैग किए गए, मोदीजी कभी भी इन तुच्छ और पक्षपाती नारों से निराश या दुखी नहीं हुए, बल्कि जनता के लिए विशेषरूप से गरीबों, पीड़ित और शोषितों के लिए लगातार काम करते रहे। सत्ताधारी सरकार द्वारा लगभग पचास जन-कल्याणकारी कार्यक्रम प्राथमिकता से और प्रभावी ढंग से चलाए गए। विपक्ष ने कभी भी इन परियोजनाओं/कार्यक्रमों के दूरगामी निहितार्थों के बारे में परवाह करने की जहमत नहीं उठाई। इन जन-कल्याणकारी कार्यक्रमों को पिछले पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कार्यान्वित किया गया।हुआ यूं कि एक तरफ विपक्ष निराधार आरोपों-आक्षेपों को बढ़ावा देने में व्यस्त रहा, सही-गलत नारे लगाते हुए सरकार को निशाने पर लेता रहा और उधर सत्तारूढ़ सरकार इन नारों की चिंता किये विना जन-हितकारी योजनाओं और अन्य सुधार-कार्यक्रमों को लागू करने के लिए कार्यशील रही।विपक्ष आलोचना करता रहा,नारे गढ़ता रहा और सरकार बेहिचक जनसाधारण के हिततार्थ काम करती रही। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई सभी सामाजिक और आर्थिक योजनाओं ने वोटर को खूब प्रभावित किया और साथ ही मोदी की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। इसी के साथ राष्ट्रवाद में मोदी के दृढ़ विश्वास ने भी मोदी को न केवल जनता का नायक बनाया बल्कि देश का सच्चा राष्ट्रवादी नेता भी बना दिया। उनके प्रसिद्ध नारे “सबका साथ, सबका विकास” ने मोदी को करोड़ों भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक और जन-नेता बनाया। संक्षेप में, किसी भी लोकतांत्रिक /गैर-लोकतांत्रिक देश के विपक्ष को इस महान नेता की सरलता,कार्यक्षमता, मानव-दृष्टि, बड़ों के प्रति सम्मान की भावना और कुशल वक्तृता से बहुत-कुछ सीखने को मिल सकता है। आज उनकी यही लोकप्रियता उनके लिए और सरकार के लिए आँख का काँटा बनी हुयी है.’शाहीन बाग़’ विपक्ष की कुंठा का प्रतीक है.