Monday, January 20, 2020



शाहीन बाग़ में जुड़े मजमे को संबोधित करने के लिए विभिन्न पार्टियों के नेताओं में होड़ मची हुयी है.कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर,शशिथरूर,दिग्विजयसिंह,सलमान खुर्शीद आदि इस मौके को हाथ से न जाने देने की गरज से भीड़ को उलटी-सीधी पट्टी पढ़ा चुके हैं और पढ़ा भी रहे हैं.सुना है दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून के विरोध में जारी धरने प्रदर्शन में रविवार को कुछ कश्मीरी पंडित भी पहुंचे. इन लोगों ने कहा कि वे नागरिकता क़ानून के समर्थन में हैं.ख़ास बात यह है कि इसी धरने में कश्मीरी पंडित और प्रसिद्ध रंगकर्मी एमके रैना भी पहुंचे. एमके रैना ने कहा कि शाहीन बाग़ में विरोध कर रहे लोगों को देखकर उन्हें उन दिनों की याद आती है जब कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म हुए थे. इसलिए वो धरने पर बैठे लोगों से हमदर्दी जताने के लिए आए हैं. दूसरे शब्दों में स्वनामधन्य रंगकर्मी एमके नागरिकता कानून और पंडितों पर जिहादियों द्वारा किये गये अत्याचार,उनके जबरन विस्थापन और उनके नरसंहार को एक ही तराजू से तौलते हैं. दोनों बातें परस्पर-विरोधी हैं.नागरिकता कानून पीड़ित शरणार्थियों को शरण देने से जुडा हुआ है और कश्मीरी पंडितों का मुद्दा पंडितों पर हुयी ज्यादतियों और घाटी से उन्हें जिहादियों द्वारा बेदर्दी से बेदखल करने से जुड़ा हुआ है. रंगकर्मी एमके या तो नागरिकता कानून को समझे नहीं हैं या फिर किसी पार्टी-विशेष के अजेंडा को चलाने की गरज से शाहीन बाग़ पहुंचे थे.

शाहीन बैग का मजमा राजनीतिक अखाड़ेबाजी का केंद्र बनता जा रहा है.खोयी हुयी सत्ता को पाने के लिए विपक्ष बेचैन है.अनुच्छेद ३७० हटा कोई प्रदर्शन नहीं,तीन-तलाक-बिल पास हुआ कोई हो-हल्ला नहीं,राम मंदिर बनने का निर्णय सरकार के पक्ष में गया तब भी कोई धरना-प्रदर्शन नहीं. अब इस नागरिकता के मुद्दे को विपक्ष भुनाने में लगी हई है.इसे किसी भी कीमत पर हाथ से निकलने नहीं देना चाहती.सरकार भी ढील शायद इसलिए दे रही है कि स्थिति शीघ्र ही सामान्य होगी क्योंकि नागरिकता कानून के बारे में जो भ्रम फैलाया जा रहा है वह दूर होते ही जनता इस कानून के अच्छे पक्ष को जान जाएगी.इसके लिए जनता में जागरूकता लाना आवश्यक है और इस बिल के बारे में सही जानकारी जनता तक पहुंचाना लाजिमी है.



समूचे देश में और ख़ास तौर पर शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन/आन्दोलन का एक दूसरा पक्ष भी है जिसे समझना बेहद ज़रूरी है.लोकसभा के 2019 के चुनाव-नतीजों ने उन ऐसे सभी मिथकों, अटकलों और अनिश्चितताओं पर पर्दा गिरा दिया जो मोदी की जीत को लेकर संदेह प्रकट कर रहे थे। साझा-विपक्ष द्वारा मोदी के विरुद्ध चिनौतीपूर्ण संघर्ष के बीच, मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।दरअसल, विपक्ष द्वारा 1914 में ‘चायवाला’ और 2019 में ‘चौकीदार चोर है’ के रूप में टैग किए गए, मोदीजी कभी भी इन तुच्छ और पक्षपाती नारों से निराश या दुखी नहीं हुए, बल्कि जनता के लिए विशेषरूप से गरीबों, पीड़ित और शोषितों के लिए लगातार काम करते रहे। सत्ताधारी सरकार द्वारा लगभग पचास जन-कल्याणकारी कार्यक्रम प्राथमिकता से और प्रभावी ढंग से चलाए गए। विपक्ष ने कभी भी इन परियोजनाओं/कार्यक्रमों के दूरगामी निहितार्थों के बारे में परवाह करने की जहमत नहीं उठाई। इन जन-कल्याणकारी कार्यक्रमों को पिछले पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कार्यान्वित किया गया।हुआ यूं कि एक तरफ विपक्ष निराधार आरोपों-आक्षेपों को बढ़ावा देने में व्यस्त रहा, सही-गलत नारे लगाते हुए सरकार को निशाने पर लेता रहा और उधर सत्तारूढ़ सरकार इन नारों की चिंता किये विना जन-हितकारी योजनाओं और अन्य सुधार-कार्यक्रमों को लागू करने के लिए कार्यशील रही।विपक्ष आलोचना करता रहा,नारे गढ़ता रहा और सरकार बेहिचक जनसाधारण के हिततार्थ काम करती रही। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई सभी सामाजिक और आर्थिक योजनाओं ने वोटर को खूब प्रभावित किया और साथ ही मोदी की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। इसी के साथ राष्ट्रवाद में मोदी के दृढ़ विश्वास ने भी मोदी को न केवल जनता का नायक बनाया बल्कि देश का सच्चा राष्ट्रवादी नेता भी बना दिया। उनके प्रसिद्ध नारे “सबका साथ, सबका विकास” ने मोदी को करोड़ों भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक और जन-नेता बनाया। संक्षेप में, किसी भी लोकतांत्रिक /गैर-लोकतांत्रिक देश के विपक्ष को इस महान नेता की सरलता,कार्यक्षमता, मानव-दृष्टि, बड़ों के प्रति सम्मान की भावना और कुशल वक्तृता से बहुत-कुछ सीखने को मिल सकता है। आज उनकी यही लोकप्रियता उनके लिए और सरकार के लिए आँख का काँटा बनी हुयी है.’शाहीन बाग़’ विपक्ष की कुंठा का प्रतीक है.