Tuesday, September 19, 2017



मृणाल पांडे का हालिया ट्वीट मीडिया और अन्यत्र चर्चा का विषय बना हुआ है।मेरी एक पुस्तक "कश्मीरी कवयित्रियाँ और उनका रचना संसार' की मृणालजी ने बड़ी सुंदर प्रस्तावना लिखी है।बहुत पहले 'वामा' के कार्यालय में इनसे दो-एक बार मिला भी हूँ।सौम्य, शालीन और विदूषी!!इनका मैं सम्मान करता आ रहा हूँ।मगर यह क्या कि जब आप सत्ता से लाभ का पद भोग रही थीं, तब सब ठीक था।नई सरकार के आते ही और पद से च्युत होते ही आप शालीनता को ताक पर रखकर खुन्नस निकालने पर उतर आयीं।पूर्व में भी इनके लेखों की ‘टोन’ सत्ता से उऋण होने की ज़्यादा रही है।सत्ता के नए दौर में भी इनको अपने पद पर बरकरार रखा जाता तब शायद ऐसी भाषा का प्रयोग न करतीं।दरअसल,जिनकी सुख-सुविधाएं छिन गईं हैं, वे गरिया ज़्यादा रहे हैं।मग़र वे नहीं समझते कि काल की गति बड़ी न्यारी होती है।समय सब का और समय के अधीन सब।जन्म-दिन जैसे महत्वपूर्ण और शुभ अवसर पर बधाई देने के बदले:चिरायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करने के बदले, आप किसी को वैशाख- नंदन/गधा कह दें,तो उस व्यक्ति को और उसके चाहने वालों को कैसा लगेगा? इस मानसिकता को देश के एक नागरिक की धृष्टता की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?असहमति प्रकट करने के और भी कई तरीके अथवा अवसर हो सकते थे।अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी कह दें।घोर विरोधी पत्रकारों ने भी इस अशोभनीय ट्वीट की निंदा की है।

वैसे,मृणालजी ने जैसा ट्वीट किया है क्या अपने समय में पद पर रहते हुए वैसा ट्वीट वे अपने समय के पीएम,सीएम, आरजी,सीपी,आईएम इत्यादि पर लिखने का दुःसाहस कर सकती थीं?सौ बात की एक बात! सत्ता-सुख जिनका छिना है वे सभी हवा में तलवारें चला रहे हैं।

शिबन कृष्ण रैणा

अलवर 





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