Saturday, August 25, 2018



हमारे एक मित्र ने आज अपनी वाल पर कश्मीर के मुगलकालीन गवर्नर/सूबेदार अलीमर्दान खां की फारसी में लिखी एक कविता पोस्ट की है.उन्हीं के शब्दों में :” किंवदंती है कि एक बार अली मर्दान खान
रात के समय प्रसिद्ध महादेवगिरि की तलहटी में शालीमार बाग के आसपास टहल रहे थे। सहसा उनकी नज़र महादेव गिरि की चोटी पर गयी।
उन्हें एक कौंध दिखाई दी।सारा वातावरण चमक उठा।उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि वह क्या देख रहे हैं! उन्हें महेश्वर रूप शिव का साक्षात्कार हो रहा था।
इस आध्यात्मिक अनुभव को उन्होंने फारसी में काव्यबद्ध किया।उनकी यह फारसी कविता काफी प्रसिद्ध हुई। सत्रहवीं शताब्दी से आज तक यह रचना अक्षुण्ण रही।“

इस रोचक प्रसंग में मैं कुछ तथ्य और जोड़ना चाहूंगा।अलीमर्दां खान ईरान से दिल्ली आया था।वहां उसने अकूत धन संपत्ति हथिया ली थी।इस संपत्ति की सुरक्षा के लिए उसने उस समय के दिल्ली के शासक शाहजहां से गुहार लगाई।शाहजहां ने उसे कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया।महादेव शंकर से जुड़ा उनका भजन/पद्य लोक प्रचलित है।कश्मीर के किसी प्रामाणिक इतिहास (के रिकॉर्ड)में दर्ज नहीं है।वैसे,मुगलकाल के दौरान जितने भी सूबेदार/गवर्नर दिल्ली दरबार से कश्मीर में नियुक्त हुए,सभी ने अपने अधिकारों और पदों का खुलकर अपनी अय्याशी के लिए इस्तेमाल किया। कुछेक ने अगर जनहितकारी काम भी किये तो वे मात्र अपनी छवि को ठीक रखने के लिए।हमें यह नही भूलना चाहिए कि विदेशी आक्रांताओं ने हम पर ज़ोरजबर से राज्य किया है।वे खैरात बांटने नहीं,हमारी बहू-बेटियों की शादी करवाने नहीं अपितु माल असबाब लूटने और हर तरह की अय्याशी करने हमारे देश में आये थे।



मैं ने कश्मीरी के प्रसिद्ध इतिहासकार पी० एन० कौल बमज़ई साहब की पुस्तक History of Kashmir आज सुबह ही देखी।और भी कुछ इतिहास खंगाले।अलीमर्दां खां की इस कविता का उनमें कहीं भी उल्लेख नहीं है।बामज़ई साहब की पुस्तक की प्रस्तावना पंडित जवाहलाल नेहरू ने लिखी है।कश्मीर के इतिहास पर लिखी जाने वाली अत्यंत प्रामाणिक पुस्तक है यह।खां साहब ने ईरान में खूब पैसा लूटा और उसे ठिकाने लगाने के लिए शाहजहां से मदद मांगी।शाहजहां ने उसे शरण दी और कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया।(सम्भव है लुटे हुए माल में से कुछ प्रतिशत की साझेदारी भी तय हई हो)अब ऐसे लुटेरे को महादेव ने क्योंकर दर्शन दिये, यह समझ में नहीं आ रहा।आपको कुछ समझ मे आरहा हो तो प्रकाश डालिये।
मेरे मन में एक शंका और भी है।जब धर्मनिष्ठ,सत्यप्रतिज्ञ और राष्ट्रवादी सन्त शिरोमणि गुरु तेगबहादुर सिंह जी का सर धर्म-रक्षा के लिए मुगल शासक उनके धड़ से अलग कर सकते थे, तो अलीमर्दां को उनकी हिन्दूवादी कविता के लिए उन्हें काफ़िर समझ मुगल दरबार ने उन्हें कोई कठोर दंड क्यों नहीं दिया?किसी मित्र के पास इस बात का कोई जवाब हो तो बताएं.

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