Friday, January 18, 2019


कश्मीरी पंडितों का काला दिवस १९ जनवरी,१९९० 


कश्मीरी पंडितों के घाटी से जबरन विस्थापन के लगभग उन्नती वर्ष 19 जनवरी,2019 को पूरे हुए।इस बीच न 'पनुन कश्मीर'(अपना कश्मीर)की अवधारणा साकार हुई और न पंडितों की घरवापसी का सपना पूरा हो सका।पण्डितों को वापस घाटी में बसाने की सरकार की पहल भी कोई रंग नहीं लाई।बदहाली से जूझते,अपने ज़ख्मों को सहलाते तथा कर्मनिष्ठ बन इस देशभक्त कौम ने इन उन्नतीस वर्षों के दौरान दुनिया को दिखा दिया कि प्रभु उनकी मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं।कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को मात्र वोटों के लिए भुनाने की बात आहिस्ताआहिस्ता साफ होती जा रही है।कश्यप ऋषि की संतानें विपरीत परिस्थितियों में जीना खूब जानती है।यही इस देशप्रेमी समुदाय का सम्बल और सहारा है। यहाँ पर इस बात को रेकांकित करना लाजिमी है कि जब तक कश्मीरी पंडितों की व्यथा-कथा को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर नहीं किया जाता तब तक इस धर्म-परायण,कर्तव्यनिष्ठ और राष्टभक्त कौम की फरियाद को व्यापक समर्थन प्राप्त नहीं हो सकता।इस के लिए परमावश्यक है कि सरकार इस समुदाय के किसी जुझारू,कर्मनिष्ठ और सेवाभावी नेता को राज्यसभा में मनोनीत करे ताकि पंडितों के दुःखदर्द को देश तक पहुँचाने का उचित और प्रभावी माध्यम इस समुदाय को मिले।अन्य मंचों की तुलना में देश के सर्वोच्च मंच से उठाई गयी समस्याओं की तरफ जनता और सरकार का ध्यान तुरंत जाता है। 

यदि सरकार इस तरह का कोई निर्णय लेती है तो निश्चित ही कश्मीरी पंडित समुदाय की व्यथा-कथा को वाणी मिलेगी और पंडित समाज को लगेगा कि सरकार सच में उनकी हितैषी है और उनके दुखदर्द की पैरवी करने वाला कोई जुझारू नेता देश की सर्वोच्च अदालत/संसद में बैठा हुआ है।

शिबन कृष्ण रैणा 

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