Saturday, December 25, 2021



अमरनाथ तीर्थ

भारतवर्ष तीर्थों की पवित्र भूमि है। इस धरा पर शायद ही कोई ऐसा प्रांत होगा जहाँ तीर्थस्थल न हों। ये तीर्थस्थल दीर्घकाल से आस्था एवं विश्वास के प्रमुख केंद्र रहे हैं। कश्मीर प्रांत में स्थित 'अमरनाथ' नामक तीर्थस्थल का विशेष महत्व है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इस तीर्थ को ‘अमरेश्वर’ बताया गया है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों: सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी-विश्वनाथ आदि के अतिरिक्त ‘अमरनाथ’ का विशेष महत्व है। शिव के प्रमुख स्थलों में अमरनाथ अन्यतम है। अत: अमरनाथ को तीर्थो का तीर्थ कहा जाता है।

अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह जम्मू-कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 141 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 3,888 मीटर (12756 फुट) की ऊंचाई पर स्थित है। इस गुफ़ा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। यह गुफ़ा लगभग 150 फीट क्षेत्र में फैली है और गुफ़ा 11 मीटर ऊंची है तथा इसमें हज़ारों श्रद्धालु समा सकते हैं। प्रकृति का अद्भुत वैभव अमरनाथ गुफ़ा, भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य (जीवन और मृत्यु के रहस्य) बताने के लिए इस गुफ़ा को चुना था। मृत्यु को जीतने वाले मृत्युंजय शिव अमर हैं, इसलिए 'अमरेश्वर' भी कहलाते हैं। जनसाधारण 'अमरेश्वर' को ही अमरनाथ कहकर पुकारते हैं।शिव-भक्त इसे बाबा अमरनाथ या बर्फानी-बाबा भी कहते हैं।

अमरनाथ हिंदी के दो शब्द “अमर” अर्थात “अनश्वर” और “नाथ” अर्थात “भगवान” को जोड़ने से बनता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छिपा रहे थे। तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाये और यही भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
40 मीटर ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर की एक सुंदर मूर्ती बन जाती है। हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीली मूर्ति को शिवलिंग मानते है। कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे। चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था। महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था। और इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ने वहाँ तांडव नृत्य किया था और अंत में भगवान शिव देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।
इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है। ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके। लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है। जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस सेवा भी उपलब्ध है। पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है। वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है। इसीके साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है। कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन।
अधिकारिक तौर पे, यात्रा का आयोजन राज्य सरकार श्री अमरनाथ यात्रा बोर्ड के साथ मिलकर करती है। सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान लगने वाली सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमे कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल है।

गुफा के रास्ते में बहुत सी समाजसेवी संस्थाए श्रद्दालुओ को खाना, आराम करने के लिये टेंट या पंडाल की व्यवस्था करते है। यात्रा के रास्ते में 100 से भी ज्यादा पंडाल लगाये जाते है, जिन्हें हम रात में रुकने के लिये किराये पर भी ले सकते है। निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी दी जाती है।



इतिहासकारों का विचार है कि अमरनाथ यात्रा हज़ारों वर्षों से चली या रही है तथा अमरनाथ-दर्शन का महत्त्व पुराणों में भी मिलता है। बृंगेश सहिंता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में इस तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। नीलमत पुराण में अमरेश्वर के बारे में दिए गए उल्लेख से पता चलता है कि इस तीर्थ के बारे में छठी-सातवीं शताब्दी में भी लोगों को जानकारी थी। कश्मीर के महान् शासकों में से एक था 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी), जिसे कश्मीरी लोग प्यार से ‘बड़शाह’ कहते हैं, खते हैं कि उसने भी अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा की थी।(इस बारे में इतिहासकार जोनराज ने उल्लेख किया है।) अकबर के इतिहासकार अबुल-फ़जल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफ़ा में बर्फ़ का एक बुलबुला बनता है जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मुझे लगा कि बर्फ़ का लिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज़ नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक-स्थल का इतना आनन्द लिया।

अमरनाथ की यात्रा श्रीनगर स्थित दशमी अखाड़ा से पंचमी तिथि को प्रारम्भ होती है और पहलगाम में रुकती है और पुन: द्वादशी तिथि को प्रस्थान प्रारम्भ होता है। श्रावण मास में पवित्र हिमलिंग के दर्शनार्थ लाखों लोग भिन्न-भिन्न प्रदेशों से यहाँ आते हैं। गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें यत्र-यत्र गिरती रहती हैं और यहीं पर एक ऐसा स्थान है, जहाँ इन बूंदों से लगभग दस फुट ऊँचा शिवलिंग बनता है। चंद्रमा के घटने-बढने के साथ ही इस हिमलिंग का आकार भी परिवर्तित होता है, जो श्रावण पूर्णिमा को अपने पूर्ण रूप में आ जाता है तथा अमावस्या तक धीरेधीरे छोटा हो जाता है। विस्मय का विषय यह है कि गुफा में सामान्यतः कच्ची बफ ही दिखाई देती है जो भुरभुरी होती। है लेकिन यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। मुख्य हिम शिवलिंग से कुछ दूरी पर गणेश, भैरव तथा पार्वती के पृथक्-पृथक् हिमलिंग रूप भी दृष्टिगत होते हैं।

अमरनाथ की गुफा तक पहुँचने के लिए सामान्यतः दो मार्ग हैं, प्रथम पहलगाम मार्ग और दूसरा सोनमर्ग-बालटाल मार्ग पहलगाम या बालटाल किसी भी मार्ग से गुफा तक पहुँचा जा सकता है। पहलगाम अथवा सोनमर्ग से आगे की यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है। पहलगाम मार्ग अपेक्षाकृत सुविधाजनक है जबकि बालटाल मार्ग अमरनाथ की गुफा से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन यह मार्ग अत्यंत दुर्गम है। सामान्यतः यात्री पहलगाम मार्ग से अमरनाथ यात्राइसी मार्ग के प्रयोग हेतु प्रेरित करती है।

पहलगाम से अमरनाथ की दूरी 45 किलोमीटर है। इस यात्रा मार्ग में चंदनबाड़ी, शेषनाग तथा पंचतरणी तीन प्रमुख रात्रि पड़ाव हैं। प्रथम पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 12.8 किलोमीटर की दूरी पर है। तीर्थयात्री पहली रात यहीं पर बिताते हैं। दूसरे दिन पिस्सू घाटी की चढ़ाई प्रारम्भ होती है। चंदनबाड़ी से 13 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह चढ़ाई अत्यंत दुर्गम है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। पूरी यात्रा में पिस्सू घाटी का मार्ग बहुत कठिन है। पिस्सू घाटी समुद्र तल से 11,120 फुट की ऊँचाई पर है। इसके पश्चात् यात्री शेषनाग पहुँचते हैं। लगभग डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली हुई झील अत्यंत सुंदर है। तीर्थयात्री रात्रि में यहीं विश्राम करते हैं। तीसरे दिन यात्रा पुनः आरम्भ होती है। इस यात्रा मार्ग में बैववैल टॉप एवं महागुणास दरें को पार करना पड़ता है। महागुणास से पंचतरणी का पूरा रास्ता उतरावयुक्त है। छोटी-छोटी पाँच नदियों के बहने के कारण यह स्थान पंचतरणी नाम से प्रसिद्ध हुआ है। पंचतरणी से अमरनाथ की पवित्र गुफा 6 किलोमीटर की दूरी पर है। गुफा के समीप पहुँचकर पड़ाव डाल दिया जाता है तथा प्रात:काल पूजन इत्यादि के पश्चात् पंचतरणी वापस लौटा जाता है। अंततः प्रात:काल शिव के हिमलिंग स्वरूप के दर्शनोपरांत अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है।

जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका हैं कि शिव ने पार्वती को अमरत्व का उपदेश इसी गुफा में दिया था। जब वे उन्हें कथा सुना रहे थे तो उस समय कपोतद्वय(दो कबूतर)भी वहीं आसपास मौजूद थे जिन्होंने यह उपदेश सुन। श्रद्धालु इन्हें अमरपक्षी कहते हैं जो शिव द्वारा पार्वती को दिए गए अमरत्व के उपदेश को सुनकर अमर हो गए। आज भी जिन श्रद्धालुओं को ये कपोतद्वय दिखाई देते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि उन्हें शिव-पार्वती ने अपने प्रत्यक्ष दर्शन दिए हैं। प्रतिवर्ष सम्पन्न होने वाली इस पुण्यशालिनी यात्रा से अनेक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि अमरनाथ दर्शन और पूजन से महापुण्य प्राप्त होता है।

शास्त्रों में इंद्रिय निग्रह पर विशेष बल दिया गया है जिससे मुक्ति की प्राप्ति होती है। भृगीश संहिता में इसी प्रकार का संकेत प्राप्त होता है जिसके अनुसार अमरनाथ यात्रा निग्रह के बिना ही मुक्ति प्रदान करने वाली है। अत: यात्राक्रम में आने वाली परिस्थितियों तथा गंतव्य स्थल पर पहुँचकर होने वाले हर्ष-विषाद मिश्रित अनेकविध अनुभवों के कारण तीर्थयात्री को विविध प्रकार के सांसारिक कष्टों का बोध होता है तथा साथ ही शिव के हिमलिंगरूप के दर्शन से उसका हृदय इतना संयमित हो जाता है कि इंद्रिय निग्रह किए बिना ही उसे मुक्ति प्राप्त होती है।

भृगीश संहिता में यह भी कहा गया है कि अमरेश्वर शिव के दर्शन अत्यंत पुण्यशाली है। वे अपने भक्तों के समस्त भवरोगों यथा-आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक दु:खों का समूल नाश करते



आमरनाथ-यात्रा से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह यात्रा पारस्परिक सद्भाव के प्रचार का कार्य भी करती है। विभिन्न प्रांतों से शिव के दर्शनार्थ आने वाले लोगों में परस्पर समभाव की भावना विकसित होती है, विभिन्न भाषा-भाषी लोगों में परस्पर वार्तालाप होता है, भाईचारे की भावना का विकास होता है और विभिन्न प्रांतों की भौगोलिक जानकारी का आदान-प्रदान होता है।अत: अमर नाथ तीर्थ को तीर्थाटन के अतिरिक्त श्रद्धा,ज्ञान एवं भक्ति के समुच्चय के रूप में माना जा सकता है।

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