Sunday, July 21, 2024



अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर की यात्रा के दौरान यहाँ की सेल्युलर जेल का उल्लेख करना परम आवश्यक है।यह जेल अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानियों को कैद में रखने और उन पर ज़ुल्म ढाने के लिए बनाई गई थी। यह जेल ‘काला पानी’ के नाम से भी कुख्यात है।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता-सैनानियों पर किए गए अत्याचारों,ज़ुल्म-सितम और यातनाओं की मूक गवाह है इस जेल की दीवारें और उनकी एक-एक ईंट!

इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेलजोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन शस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।
भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राजनेता तथा विचारक विनायक दामोदर सावरकर को 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेल्युलर जेल भेजा गया था । वीर सावरकर को स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने के कारण अंग्रेजों द्वारा 'दोहरे आजीवन कारावास' की सजा सुनाकर अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में रखा गया था।सावरकर के अनुसार इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमि व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थी। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना नहीं दिया जाता था।सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। उनके समर्थक उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित करते हैं।इनके नाम को भास्वरित करता एक सुंदर पार्क जेल-परिसर के बाहर बना हुआ है।

अपने समय में इस जेल में रहने की सज़ा को कालापानी की सजा भी कहा जाता था। ‘कालापानी’ शब्द की व्युत्पति संस्कृत के शब्द 'काल' से मानी जाती है, जिसका अर्थ समय या मृत्यु होता है। यानी काला पानी शब्द का अर्थ मृत्यु के उस स्थान से है, जहां से कोई भी जिंदा वापस नहीं आता था।

पोर्ट ब्लेयर की इस जेल का एक आकर्षण ‘ध्वनि और प्रकाश शो’ है । सेल्युलर जेल के इतिहास की कहानी जानने के लिए यह शो सूचनाओं और मनोरंजन का एक अद्भुत मिश्रण है। भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में अपनी आहुति देने वाले माँ-भारती के वीर सपूतों के बारे में रुचि रखने वालों के लिए ध्वनि और प्रकाश का यह शो निश्चित रूप से देखने योग्य है।

इस शो द्वारा जेल के कैदियों की उत्पीडन-गाथा परिसर की दीवारों पर ध्वनि और प्रकाश के अद्भुत कला-कौशल से जीवंत हो उठती है।लगभग 45 मिनट तक चलने वाला यह शो अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में प्रदर्शित होता है। परिसर में बचे एक प्राचीन पीपल के पेड़ की आवाज़ द्वारा जेल की कहानी सुनाए जाने का विचार दर्शकों को भावुक कर उन्हें अतीत की यादों में डुबो देता है और वे अपने वीर शहीदों के उत्सर्ग और बलिदान की रोमांचक दास्ताँ सुनकर अभिभूत हो उठते हैं।

जेल परिसर के अंदर कुछ जगहें हैं जिन्हें सुरक्षित रखा गया है।जैसे: वह स्थान जहाँ कैदी को सूली पर चढ़ाये जाने से पहले उसके मजहब के अनुसार रस्म आदि निभाई जाती थी,कैदी को कोड़े लगाने की जगह, कैदी द्वारा कोल्हू में जुतकर तेल निकालने की जगह आदि-आदि।

भारत-माता के उन वीर सपूतों को शत-शत नमन जिन्होंने सेल्युलर जेल की काल कोठरियों में अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष प्राणों की आहुति देकर बिताये और हमें आज़ादी दिलाई।

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