Monday, September 12, 2016

हिंदी दिवस पर विशेष 

हिंदी दिवस निकट आ रहा है।तरह-तरह के कार्यक्रम होंगे:भाषण,परिचर्चाएं,पुरस्कार वितरण आदि।भावुकतावश हिंदी की बड़ाई और अंग्रेजी की अवहेलना की जायगी।गत साठ-सत्तर सालों से यही होता आ रहा है। दरअसल,जिस रफ़्तार से हिंदी के विकास-विस्तार हेतु सरकारी या गैर सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं, उससे दुगनी रफ्तार से अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।ख़ास तौर पर अच्छा रोज़गार दिलाने के मामले में हिंदी अभी सक्षम नहीं बन पायी है।हमारी नई पीढ़ी का अंग्रेज़ी की ओर प्रवृत्त होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हिंदी में उच्च ज्ञान-विज्ञान को समेटने वाला साहित्य बिल्कुल भी नहीं है।अगर अनुवाद के ज़रिये कुछ आया भी हो तो वह एकदम बेहूदा और बोझिल है।जब तक अपनी भाषा में हम मौलिक चिंतन नहीं करेंगे और हिंदी में मौलिक पुस्तकें नहीं लिखी जाएंगी,तब तक अंग्रेजी के ही मुहताज रहेंगे।आज भी संघ लोक सेवा आयोग या फिर हिंदी क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों के प्रश्नपत्र अंग्रेजी में बनते हैं और उनके अनुवाद हिंदी में होते हैं।पाद-टिप्पणी में साफ़ लिखा रहता है कि विवाद की स्थिति में अंग्रेजी पाठ को ही सही मान लिया जाय।यानी हिंदी विद्वानों का देश में टोटा पड़ गया है जो उनसे प्रश्नपत्र नहीं बनवाये जाते! विज्ञान अथवा तकनोलॉजी से जुड़े विषयों की बात तो समझ में आती है मगर कला और मानविकी से जुड़े विषयों के प्रश्नपत्र तो मूल रूप से हिंदी में बन ही सकते हैं।हिंदी को जब तक सीधे-सीधे 'ज़रूरत' से नहीं जोड़ा जाता तब तक अंग्रेजी की तरह उसका वर्चस्व और वैभव बढ़ेगा नहीं।

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