Monday, May 14, 2018


स्वर्गीया माताजी जिससे हम भाभी कहते थे

आज 13 मई २०१८ को मातृ-दिवस है।मित्रों ने फेस बुक पर अपनी प्यारी माताओं को याद किया है।जिनकी माताएं जीवित हैं उन माताओं को मेरा नमन् और जिन्होंने अपनी माताओं को खो दिया है उन माताओं को मेरी पुनीत श्रद्धांजलि।
इस अवसर पर मुझे भी मेरी माँ याद आ गई।त्याग और ममता की करुणामयी प्रतिमूर्ति।माँ की महिमा के बखान से हमारे शास्त्र भरे पड़े हैं।
‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है । हमारे वेद पुराण तथा धर्मग्रंथ सदियों से दोनों की महिमा का बखान करते रहे हैं ।
"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"
api svarṇamayī lankā na me lakṣmaṇa rochate |
jananī janmabhūmiścha svargādapi garīyasī ||
Even Lanka, decked with all it’s gold doesn’t endear itself to me;
Mother and Motherland are even far more greater than heaven.
(Rama said this to Lakshmana in Lanka.
This is one of the most famous/repeated quotes on patriotism/respect for one’s mother and motherland.)
स्वर्गीया माताजी जिससे हम भाभी कहते थे,का स्वर्गवास जम्मू/शक्तिनगर में 2001 में धनतेरस के दिन हुआ था।जम्मू में मेरे अनुज श्री मोहनकृष्ण रैणा रहते हैं।कश्मीर से विस्थापन के अनंतर मेरे माता-पिता उन्हीं के साथ जम्मू में रहते थे। मैं जिस दिन सपरिवार अलवर से जम्मू पहुंचा,भाभी उस दिन रात्रि के समय साईं/प्रभु भजन गाकर,सबको अपने हाथों से खाना परोस कर,सबके लिए बिस्तर लगाकर आदि सोने को चली गयी थी।रात के समय अचानक तबीयत बिगड़ी और भाभी सब से विदा लेकर इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गयी।जैसे अलवर से मेरे आने का ही इन्जार कर रही हो।मेरी तरफ एकटक निहारते हुए भाभी ने अंतिम सांसे मेरी गोदी में लीं।न गोली गपोली की हाजत,न अस्पताल के चक्कर और न किसी से मिन्नत मनौव्वल।न गिला किसी से और न ही किसी से कोई शिकायत।सीधी राह आयी थी,सीधी राह चली गयीं। कर्मयोगिनियों का जीवन शायद ऐसा ही होता है।इस बीच हमारे छोटे भाई शंकरजी/जयकृष्ण रैणा भी हमारे बीच नहीं रहे।अभी उनकी इतनी जल्दी जाने की उम्र नहीं थी।शायद भगवान को यही मंजूर था।भाभी 74 साल के आसपास रही होंगी और शंकरजी सम्भवतः 50 के आसपास।






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