Monday, May 14, 2018


‘कश्मीरियत’

कश्मीर घाटी में पिछले कुछेक महीनों से अगरचे आतंकी हमलों में तेज़ी आयी है,मगर उसी रफ़्तार से आंतकवादियों और जिहादियों का सुरक्षाकर्मियों द्वारा खात्मा भी किया जा रहा है।सुना है सीमा पर पर अत्यधिक चौकसी के कारण सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ में कमी तो आ गयी है मगर आतंकी संगठन स्थानीय तौर पर अब युवाओं को वर्गला कर अपने संगठन में शामिल करने के लिए बराबर प्रयासरत हैं।बेरोजगार युवकों को धनादि तथा अन्य सुविधाओं का प्रलोभन देकर इन्हें आतंकी गतिविधियाँ अंजाम देने के लिए प्रेरित किया जाता है। अपने आकाओं के कहने पर गुमराह हो रहे ये युवक अपना सबकुछ दांव पर लगा तो देते हैं, मगर कभी अपने मन से यह नहीं पूछते कि वे यह हिंसा क्यों और किसके लिए कर रहे हैं? कश्मीर के युवा सुरक्षा बलों को उनपर की जाने वाली ज्यादतियों के लिए दोषी ठहराते हैं, लेकिन वे कभी भी अलगाववादी समूहों के शीर्ष नेताओं से यह सवाल नहीं करते कि उनके खुद के बच्चे ‘आज़ादी’ के इस जिहाद में क्योंकर शामिल नहीं होते?

8 जुलाई २०१६ को कश्मीर के कोकरनाग इलाके में हुयी एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों द्वारा हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी को मार गिराया गया था।तब घाटी में कश्मीरियों द्वारा बड़े पैमाने पर नाराजगी और विरोध जताया गया था। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच चली झड़पों में वानी के कई समर्थकों की मौत और सुरक्षा बलों के कुछ जवान हताहत भी हुए थे। बुरहान वानी कश्मीर में व्याप्त आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का एरिया-कमांडर था। वह सुरक्षा कर्मियों की कई हत्याओं के साथ-साथ कश्मीर के कुछ अन्य निर्दोष लोगों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार एक खतरनाक और ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकवादी था जिसे अपने किये का दंड मिल गया। 

इधर,इसी महीने सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के अन्य कमांडर आकिब खान और समीर टाइगर को मार गिराया। इन आतंकियों में से समीर टाइगर अति खूंख्वार कैटिगरी का आतंकी था और लंबे समय से सुरक्षा बलों को उसकी तलाश थी। सुरक्षा बलों ने एक सर्च ऑपरेशन के दौरान समीर टाइगर को घेर लिया। जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से समीर टाइगर घाटी में आतंकियों का ‘पोस्टर ब्वॉय’ बन गया था। समीर टाइगर ने एक धमकी भरा विडियो जारी किया था। इसमें उसने कहा था, 'शुक्ला को कहना शेर ने शिकार करना क्या छोड़ा, कुत्तों ने समझा जंगल हमारा है...अगर उसने अपनी मां का दूध पिया है ना तो उसको कहो सामने आ जाए।' फ़िल्मी अंदाज़ में कहे इस डायलॉग की कीमत उसे चुकानी पड़ी । इसे भारतीय सेना के मेजर रोहित शुक्ला की बहादुरी,देशभक्ति और कर्तव्य-निष्ठा ही कहेंगे कि उन्हें खुलेआम चुनौती देने वाला बडबोला दहशतगर्द वीडियो के जारी होने के एक दिन के अंदर-अंदर ही मार गिराया गया। 

कश्मीर के इन गुमराह युवाओं को अपने नेताओं से पूछने की जरूरत है कि क्यों उनकी अपनी बेटियां और बेटे विदेशों में या अन्य जगहों पर आरामदायक जीवन बिता रहे हैं, जबकि घाटी में इन गुमराहों ने बेवजह ही बंदूकें उठा रखी हैं और बेमतलब युद्ध कर रहे हैं और मर रहे हैं।कोई भी इन चतुर और घाघ अलगाववादी नेताओं से यह नहीं पूछता है कि बुह्रान वानी और टाइगर समीर उनके अपने परिवार से क्यों नहीं थे? असल में,ये अलगाववादी नेता इन निर्दोष और भटके हुए युवाओं के खून पर अपनी प्रतिष्ठा को चमकाते हैं और सौदेबाजी कर कमाते-खाते हैं। खुद तो अच्छी तरह से संरक्षित रहते हैं और इन मासूम युवा-कश्मीरियों को भारतीय सेना का सामना करने के लिए धकेल देते हैं। दूसरे शब्दों में शेरों से लड़ने के लिए मेमनों को बलि पर चढाया जाता है ।
कश्मीरियों, विशेष रूप से कश्मीरी युवाओं को, इन स्वार्थी,छद्म और आत्म-प्रचार में संलिप्त अलगाववादी नेताओं की चाल को समझना चाहिए और कश्मीरी समाज की मुख्यधारा में अपने को शामिल करना चाहिए। ‘कश्मीरियत’ से बढ़कर यह मुख्य धारा और कुछ नहीं हो सकती। सहिष्णुता, बंधुता,इंसानियत और करुणा इस धारा के मुख्य आधार हैं।

शिबन कृष्ण रैणा

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