Thursday, May 10, 2018

शर्ट पीस 

क किस्सा याद आ रहा है।लगभग तीस-चालीस साल पहले का किस्सा।नया नया दिल्ली देखने को निकला था।चांदनी चौक की भीड़ को चीरता मैं आगे निकल गया।फुटपाथ पर सामान बेचने वाले ग्राहकों को लुभा रहे थे।एक जगह मैं रुक गया।शर्ट-पीस बिक रहे थे।एक के साथ एक फ्री। शर्टपीसों की बेचने वाला खूब तारीफ कर रहा था।सिकुड़ेगा नहीं,रंग नहीं छोड़ेगा आदि आदि।बाज़ार में ये दिनों पीस आपको 40 से कम में नहीं मिलेंगे।यहां पर अपनी बिक्री के लिए दोनों पीस मात्र पंद्रह में दे रहा हूँ।लूट लो,भाई लूट लो!जब तक कि मैं कुछ सोचता या खरीदने न खरीदने का निर्णय लेता,दो-तीन युवा जो मेरे पास ही खड़े थे,उन्होंने झट से जेब से पंद्रह-पंद्रह रुपये निकाले और कुछ इस तरह से शर्ट बेचने वाले को थमाए जैसे कोई नायाब चीज़ सस्ते में हाथ लग रही हो।मेरा उत्साह बढ़ा।मैं ने भी पंद्रह में दो पीस खरीदे।---तीन चार महीने बाद ही दोनों शर्ट सिकुड़ गए और रंग भी उतर गया।---तब एक जानकार ने,जो दिल्ली की चालाकियों से वाकिफ था,मुझे बताया कि वे दो पहले वाले ग्राहक उसके परिचित थे।आपमें विश्वास जगाने और अपना माल बेचने के लिए इन माल बेचने वाले लोगों की फर्ज़ी ग्राहकों से सांठगांठ होती है।आगे से सावधान रहिए।

No comments:

Post a Comment