Tuesday, May 1, 2018


करिअप्पा भारतीय सेना के पहले जनरल 


(एक मित्र की सुंदर पोस्ट मेरे पास आई।पोस्ट अंग्रेजी में थी।हिंदी जानने वालों के लिए इस पोस्ट का अंग्रेजी से हिंदी में रूपान्तर किया है।अवश्य पढ़ें।)


1 9 47 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के तुरंत बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय सेना के पहले सेनाध्यक्ष का चयन करने के लिए वरिष्ठ सेना-अधिकारियों की एक बैठक बुलाई।
नेहरूजी ने प्रस्ताव रखा: 'मुझे लगता है कि हमें भारतीय सेना के जनरल के रूप में एक ब्रिटिश अधिकारी को ही नियुक्त करना चाहिए क्योंकि अभी हमारे सेना-अधिकारियों के पास सेना का कुशल नेतृत्व करने के लिए पर्याप्त अनुभव नहीं है।'
अंग्रेजों के नीचे काम करने और हाँ-में-हाँ मिलाने वाले लगभग सभी वर्दी-धरी अफसरों ने नेहरूजी की बात की अपने सर नीचे कर मौन-स्वीकृति दे दी।तभी एक वरिष्ठ अधिकारी नाथूसिंह राठौर ने बोलने की अनुमति मांगी।अधिकारी की इस निर्भीकता ने नेहरूजी को हालाँकि तनिक अचंभित कर दिया, फिर भी उन्होंने उनसे अपनी बात रखने के लिए कहा।
राठौर ने कहा, "आप ठीक कह रहे हैं, महोदय! अगर हमारे पास राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए पर्याप्त अनुभव नहीं है तो क्या इसी बिना पर हमें किसी अनुभवी ब्रिटिश व्यक्ति को भी भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त नहीं करना चाहिए?"
चारों ओर पिनड्राप साइलेंस।
अप्रत्याशित विराम के बाद, नेहरूजी ने राठौर से पूछा:"क्या आप भारतीय सेना के पहले जनरल बनने के लिए तैयार हैं?" 
राठौर ने प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए निवेदन किया: "महोदय, हमारे पास एक बहुत ही प्रतिभाशाली और बहादुर सेना अधिकारी हैं: मेरे वरिष्ठ सहयोगी करिअप्पा साहब, जो हमारे बीच सबसे योग्य हैं।"
इस प्रकार करिअप्पा भारतीय सेना के पहले जनरल और नाथूसिंह राठौर पहले लेफ्टिनेंट जनरल बने।
(इस लेख के लिए लेफ्टिनेंट जनरल निरंजन मलिक पीवीएसएम (सेवानिवृत्त) के लिए बहुत धन्यवाद।)

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