Thursday, May 10, 2018

प्रकाश पाक्षिक 

एक रोचक प्रसंग याद आ रहा है।बात 1961-62 की होनी चाहिए।कश्मीर ब्राह्मण मण्डल,श्रीनगर ने 'प्रकाश' नाम से एक पाक्षिक पत्रिका निकालने की योजना बनाई।मैं ने ताज़ा-ताज़ा एमए किया था।नौकरी की तलाश जारी थी।जब तलक कोई पायदार नौकरी का जुगाड़ नहीं होता,'प्रकाश' में संपादक के पद पर काम करने में कोई हर्ज नहीं था।उप-संपादक श्री टीलालाल दत्त थे।प्रूफ-संपादन का काम मैं देखता था।दत्तजी बिक्री,विज्ञापन आदि का काम संभालते थे।शिवरात्रि के विशेषांक में गड़बड़ हो गयी।टीकालाल दत्त की जगह टोकालाल दत्त छप गया।प्रूफ मैं ने ही देखा था।नाम में गलती देखकर दत्तजी का गुस्सा सातवें आसमान पर।कहने लगे उन्हें जानबूझकर नीचा दिखाया जा रहा है।बहुत बवाल मचा आदि आदि।प्रकाश के दस-बारह अंक ही निकल पाए।आमदनी कम और खर्चा ज़्यादा।मण्डल भी कब तक घाटे की भरपाई करता? 'प्रकाश' को बंद करना पड़ा।मग़र जितने भी अंक निकले सभी एक से बढ़कर एक।मुझे याद है रामधारीसिंह दिनकर,सेठ गोविन्ददास,महादेवी वर्मा आदि की रचनाएं ' 'प्रकाश' में हम ने छापी।

No comments:

Post a Comment