Friday, April 20, 2018

विदेशी आक्रांता हम से गले मिलने या मेलजोल बढाने या फिर गलबहियां डालने के लिए नहीं,अपना दीन-धर्म फैलाने के लिए आये थे,कुछ तो माल-असबाब लूटने के उद्देश्य से आये थे और कुछ ऐयाशी करने के लिये आये थे। ।हमारी कमज़ोरी यह रही कि हम ने मिलकर इन आक्रांताओं को मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया। है।मुगल,गुलाम,खिलजी,तुग़लक,लोधी आदि वंशों समेत अंग्रेजों,पुर्तगाली,डच,पुर्तगाली आदि जितने भी शासकों ने हमारे देश पर हुकूमत की, वह हमारी कमज़ोरी और फूट का नतीजा मानी जायेगी।नहीं तो क्या मजाल थी कि ये विदेशी आक्रांता हमारी धरती पर पैर रखते।राणा प्रताप,गुरु तेगबहादुर सिंह शिवाजी आदि की हम प्रशंसा नहीं करेंगे जो मरते दम तक मुगलों से लड़ते रहे और अंत समय तक उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की।मैं ने कभी किसी भी इतिहास-गन्थ में ‘राणाप्रताप महान’ (Rana Pratap the Great) नहीं पढ़ा ‘अकबर महान’ (Akbar the Great) ज़रूर पढ़ा। । दुर्भाग्य से हमारे यहाँ जो इतिहास की किताबें लिखी गई, वे संभवतः एक ख़ास ‘उद्देश्य’ से लिखवाई गई। ।हमें तो हमारे अपने रण-बांकुरों और देश के लिए कुर्बान होने वालों पर गर्व होना चाहिए।विदेशी तो अपनी गर्ज़ से हमें लूटने और शोषण करने या फिर अपने धर्म का प्रचार करने के लिए आए थे।
वर्तमान परिदृश्य में समय की मांग है कि आपसी मन मुटाव छोड़कर हम एक हों।अपने देश के बलिदानियों का स्मरण करें और देश कि अखंडता पर आंच न आने दें।
शिबन कृष्ण रैणा 
अलवर 

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