Monday, April 30, 2018

साईकल की महिमा

उस ज़माने की बातें हैं जब साईकल की बड़ी महिमा हुआ करती थी।साईकल दहेज में दी जाती थी।गिने चुने लोगों के पास साईकल हुआ करती थी।हरक्यूलस,हिन्द,एटलस,रैलेह आदि सायकलें खूब चलती थीं।रैलेह शायद अच्छी क्वालिटी की महंगी साईकल मानी जाती थी।ये बातें पचास के दशक के आसपास की होनी चाहिए।फिर आया दुपहिए यानी स्कूटर का ज़माना।लम्बरेटा और वेस्पा ने धूम मचा दी।वेस्पा की एडवांस बुकिंग एक-एक, दो-दो साल पहले करवानी पड़ती थी।बज़ाज़, चेतक,विजय,एलएमएल,अरावली आदि भी मैदान में उतरे।ये बातें साठ-सत्तर के दशक के आसपास की हैं।इस बीच मोटर सायकलें भी मार्केट में आगयीं: एनफील्ड,जावा, राजदूत आदि।अस्सी के दशक तक आते आते लोगों ने सायकलें छोड़ दीं और स्कूटर/मोटरसाइकिल चलाने लगे।कार रखना या खरीदना लक्ज़री ही थी।
सरकारी कर्मचारियों को दुपहिया वाहन खरीदने के लिए कम दरों पर लोन मिला करता था।मैं ने भी लोन लेकर एक स्कूटर खरीदा और साईकल को अलविदा कहकर कॉलेज उसी पर जाने लगा।अन्य कई सारे मित्रों के पास भी स्कूटर आगये।साईकल पर कॉलेज जाना अब शोभनीय नहीं माना जाता था।
एक दिन ऋण कार्यलय का एक क्लर्क मुझे मार्किट में मिला।वह मुझे जानता था।बोला, 'सर आपके कॉलेज में अमुक नाम के कोई प्रोफेसर साहब हैं?'मेरे हाँ करने पर वह बोला:'सर,उन्होंने साईकल-लोन के लिए अप्लाई किया है।क्या वे इतने तँगदस्त हैं?हमारे यहाँ तो अब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी स्कूटर लोन के लिए अप्लाई करते हैं,साईकल लोन के लिए नहीं।'
'उनकी मर्जी।शायद व्यायाम के उद्देश्य से लेना चाहते होंगे।' मैं ने प्रोफेसर साहब का पक्ष लिया।वैसे,इन प्रोफेसर साहब की हर बात न्यारी ही होती थी।

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