Monday, April 30, 2018

बख्शी गुलाम मोहम्मद

बात साठ के दशक की है।बख्शी गुलाम मोहम्मद कश्मीर के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।उनके दामाद साहब मीर नसर उल्लाह खान श्रीप्रताप कॉलेज में केमिसट्री के लेक्चरर नियुक्त हुए थे।मैं ने इसी कॉलेज से बीए किया है।हालांकि मेरे पास केमिस्ट्री विषय नहीं था, मगर प्रो0 नसर-उल्लाह साहब मेरे ग्रुप-ट्यूटर थे यानी किसी भी शिक्षणेत्तर कठिनाई के निवारण के लिए मैं उनसे मार्गदर्शन ले सकता था।कॉलेज प्रशासन ने सभी छात्रों को ग्रुपों में बांटा था और हर ग्रुप का एक प्रभारी/ट्यूटर हुआ करता था।
इस बीच खबर आई कि नसर साहब और किन्हीं अन्य रसूख वाले सज्ज्न को राज्य सरकार ने अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए दोनों को आईएएस के खिताब से नवाजा।एक बार आईएएस जो हो गया वह फिर सेक्रेटरी/चीफ seretary बन के तो रिटायर होता ही है।(मेरी तरह कॉलेज शिक्षा में रहते तो हद से हद प्रिंसिपल बन जाते।)वे केंद्र में कई उच्च पदों पर रहे ।कुछ समय तक वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सचिव पद पर भी रहे और बाद में जम्मू कश्मीर राज्य के मुख्य सचिव के पद पर से रिटायर हुए।शायद अब इस संसार में नहीं हैं।
जब वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव बने तो उनको मैं ने बधाई पत्र लिखा और याद दिलाया कि 1957-58 में वे श्रीप्रताप कॉलेज में मेरे ग्रुप ट्यूटर रहे हैं।उनका तुरन्त जवाब आया और ढेर सारी शुभकामनाएं भेजीं।दिल्ली में कभी मिलने के लिए भी आमंत्रित किया।
कहने का अभिप्राय यह है कि अच्छी रिश्तेदारी से मिला अच्छा पद आदमी को कहां से कहाँ पहुंचाता है!

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