Tuesday, April 17, 2018

सांसारिक आधि-व्याधि, क्लेश-संताप आदि से मुक्ति का अमोघ साधन

TYPOGRAPHY

कश्मीर शैवदर्शन की जब चर्चा चलती है तो स्वछन्द-भैरव द्वारा प्रस्फुटित “बहुरूपगर्भ स्तोत्र” की ओर ध्यान जाना स्वाभाविक है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इन स्तोत्रों/श्लोकों का पठन-पाठन बड़ा ही फलदायी और सार्थक माना जाता है।

मेरे दादाजी स्व० शम्भुनाथजी राजदान (रैना) प्रधान ब्राह्मण महामंडल, श्रीनगर-कश्मीर ने अथक परिश्रमोप्रांत अपने जीवन के अंतिम वर्षों में इन दुर्लभ स्तोत्रों का संकलन किया था। बाद में इन स्तोत्रों का हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशन माननीय मंडन मिश्रजी की अनुकम्पा से लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली से हुआ।
मुझे अतीव प्रसन्नता है कि दादाजी के इस पुनीत, श्रमसाध्य एवं लोकहितकारी प्रयास को सुधी पाठकों तक पहुँचने में मैं निमित्त बना। दादा की भी यही इच्छा थी।
श्रीबहुरूपगर्भस्तोत्रम्श्रीबहुरूपगर्भस्तोत्रम्मेरे पितामह स्वर्गीय श्री शम्भुनाथजी राज़दान (रैना) एक उच्चकोटि के संस्कृत विद्वान्, धर्मनिष्ठ पण्डित तथा सदाशयी व्यक्ति थे। ज्योतिष, व्याकरण, कर्मकाण्ड, शैव-दर्शन आदि के वे अच्छे ज्ञाता थे। वर्षों तक उन्होंने संस्कृत भाषा-साहित्य का अध्यययन-अध्यापन किया तथा कश्मीर ब्राहृमणमण्डल के लगभग एक दशक तक प्रधान रहे। वे जीवन-पर्यन्त संस्कृत के उन्नयन हेतु समर्पित रहे। जीवन के अपने अन्तिम दिनों में अशक्त होने के बावजूद उन्होंने “श्रीबहुरूपगर्भस्तोत्रम्” का सुन्दर एवं प्रामाणिक संपादन/आकलन किया।
इस पुस्तक के प्रकाशित होने के पीछे यहां पर अपना एक संस्मरण उद्धृत करना चाहूंगा। दादाजी का स्वर्गवास कश्मीर में १९७१ में हुआ। उन दिनों मैं प्रभु श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा/उदयपुर में सेवारत था। दादाजी के स्वर्गवास के समय मैं लम्बी दूरी के कारण कश्मीर तो नहीं जा सका पर हाँ एक विचित्र घटना अवश्य घटी। मेरी श्रीमतीजी ने मुझे बताया कि दादाजी उन्हें सपने में दिखे और उनसे कहा: ‘मेरी एक पाण्डुलिपि घर में पड़ी हुई है जिसका प्रकाशन होना चाहिए और यह काम तुम्हारे पति शिबनजी ही कर सकते हैं।‘ दादाजी अच्छी तरह से जानते थे कि पूरे घर-परिवार में लिखने-पढ़ने के प्रति मेरी विशेष रुचि थी और उनके स्वर्गवास होने तक मेरी दो-तीन पुस्तकें प्रकाशित भी हुई थीं।
ग्रीष्मावकाश में जब मैं कश्मीर गया तो सर्वप्रथम उस पाण्डुलिपि को ढूंढ निकाला जिसके बारे में दादाजी ने मेरी श्रीमतीजी से उल्लेख किया था। सचमुच 'कैपिटल-कापी' में तैयार की गई उस पाण्डुलिपि के कवर के पिछले पृष्ठ पर मेरा नाम अंकित था-‘शिबनजी’। शायद वे अच्छी तरह से जानते थे कि इस पाण्डुलिपि का उदार मैं ही कर सकता था। इस बीच मेरा तबादला अलवर हो गया। संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान् डा० मण्डन मिश्र के अनुज डा० गजानन मिश्र कालेज में मेरे सहयोगी थे। उन्होंने इस पाण्डुलिपि को छपवाने में मेरी पूरी सहायता की। मैं जयपुर के सकेंट हाउस में डा० मण्डन मिश्र से मिला| डा० साहब ने दादाजी के प्रयास की सरहाना की इसे प्रकाशित करने के मेरे निवेदन को सिद्धान्ततः स्वीकार कर लिया। चूंकि मूल पण्डुलिपि में हिन्दी अनुवाद नहीं था,अतः उनके संस्थान ने इसका सुन्दर अनुवाद भी करवाया और इस तरह से दादाजी का यह श्रम सार्थक होकर ज्ञान-पिपासुओं के सामने आ सका। कश्मीर की इस अद्भुत एवं बहुमूल्य धरोहर को देखकर धर्म-दर्शन, विशेषकर, कश्मीर की शैव-परम्परा में रूचि रखने वाले सुधीजन अवश्य हर्षित होंगे।
“श्रीबहुरूपगर्भस्तोत्र” के अंत में दिए गये आप्त-वचनों को पढ़कर निश्चय ही इन अनमोल स्तोत्रों के महात्म्य का भान हो जाता है। 
इति श्रीबहुरूपगर्भस्तोत्र सम्पूर्णम् । इति शुभम् (उपसंहार एवं फलश्रुति)
"इस प्रकार यह महान् स्तोत्रराज महाभैरव द्वारा कहा गया है। यह योगिनियों का परम सारभूत है । यह स्तोत्र किसी अयोग्य तथा अदीक्षित, मायावी, क्रूर, मिथ्याभाषी, अपवित्र, नास्तिक, दुष्ट, मूर्ख, प्रमादी, शिथिलाचारी, गुरु, शास्त्र तथा सदाचार की निन्दा करने वाले, कलहकर्त्ता, निन्दक, आलसी, सम्प्रदाय-विच्छेदक अथवा प्रतिज्ञा तोड़ नेवाले, अभिमानी और अन्य सम्प्रदाय में दीक्षित को नहीं देना चाहिए।
यह केवल भक्तियुक्त व्यक्ति को ही देना चाहिए। आचारशून्य पशुओं के समक्ष कहीं भी कभी भी इस स्तोत्र का उच्चारण नहीं करना चाहिए। इस स्तोत्र का स्मरण-मात्र करने से सदैव विध्न नष्ट होते हैं। यक्ष, राक्षस, वेताल, अन्य राक्षस आदि, डाकिनियां, पिशाच,जन्तु एवं पूतनादि राक्षसियां, खेचरी और भूचरी डाकिनी, शाकिनी आदि सभी इस स्तोत्र के पाठ से उत्पन्न प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त जो भी भयङ्कर दुष्ट जीव हैं तथा रोग, दुर्भिक्ष, दौर्भाग्य, महामारी, मोह, विषप्रयोग, गज, व्याघ्र आदि दुष्ट पशु हैं, वे सभी दसों दिशाओं से भाग जाते हैं । सभी दुष्ट नष्ट हो जाते हैं,. ऐसी परमेश्वर की आज्ञा है।“

shiben rainaDr. Shiben Krishen RainaCurrently in Ajman (UAE)Member, Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice (Govt. of India)Senior Fellow, Ministry of Culture (Govt. of India)
Dr. Raina's mini bio can be read here:

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