Friday, June 17, 2016


हर वर्ष कुछ ऐसा योग बनता हैं कि जब हम दुबई में होते हैं बेटे के पास ढाई-तीन महीनों के लिये,तो एक तो मेरा खुद का जन्म-दिन और दूसरा हमारी शादी की वर्ष-गाँठ दोनों इन्हीं दिनों के दौरान पड़ते हैं।आज हमारी शादी की उनचासवीं वर्ष-गाँठ थी।पीछे मुड़कर देखता हूँ तो सब-कुछ तो नहीं, हाँ बहुत-कुछ अच्छा लगता है।जो मिला उससे संतुष्ट और जो न मिल सका,उसका गिला नहीं।अपने वैवाहिक जीवन में प्रभु श्रीनाथजी की नगरी में बिताये युवा काल के वे बेशकीमती दस वर्ष(1967-77)मैं अविस्मरणीय मानता हूँ।मेरे पारिवारिक और अकादमिक जीवन की दिशा को निर्धारित करने वाली नींव यहीं पर पड़ी।प्रभु श्रीनाथजी को नमन्।दोनों बेटियों ने शुभ कामनाएं भेजीं।बड़ी ने बैंगलोर से और छोटी ने मालदीव से।जिन्हें याद था उन्होंने भी फेसबुक द्वारा सन्देश भेजे। सभी को धन्यवाद।
बच्चों ने केक दिन में काटा और रात्रि-भोज शारजाह स्थित प्रसिद्ध शाकाहारी रेस्तारां "द्वारका" में। कुछ चित्र:
















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