Sunday, June 26, 2016





अब्राहम लिंकन का अंतिम दिन (14 अप्रैल, 1865)




अब्राहम लिंकन सोलहवें राष्ट्रपति थे जो मार्च १८६१ से लेकर अप्रैल १८६५ तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे।निम्न-मध्यवर्ग की लाचारियों,अभावों और पीडाओं को झेलते लिंकन इस महान पद तक पहुंचे थे।अमेरिका में दास-प्रथा के उन्मूलन की दिशा में किये गये इनके अभूतपूर्व प्रयासों को अमेरिका और पूरे विश्व में सदैव याद किया जायगा।कहते हैं, इनको इनके हितैषियों ने सावधान किया था कि गुलाम-प्रथा-समर्थक लोग आपकी जान के लिए खतरा हैं। आप अपनी सुरक्षा बढ़ा दें। परंतु लिंकन को अपनी जनता पर पूरा भरोसा था कि जनता ऐसा कुछ भी नहीं करेगी।मगर दैव को कुछ और ही मंज़ूर था। राजकाज के अपने व्यस्त समय में से थोडा-सा समय निकाल कर 14 अप्रैल 1865 को राष्ट्रपति लिंकन और श्रीमती लिंकन ने वॉशिंगटन डीसी में फोर्ड थियेटर में चल रहे एक नाटक को देखने का मन बनाया। वे अपनी पत्नी मैरी टाड और मित्रों के साथ रथ पर बैठकर थियेटर गये। वहां उन्हें एक विशेष स्थान पर बैठाया गया।

जॉन विल्केस बूथ नाम का एक युवक था जो गुलाम(दास)-प्रथा का कट्टर समर्थक था। वह अब्राहम लिंकन की जान का प्यासा था। उसने जान लिया था कि अब्राहम लिंकन नाटक देखने जा रहे हैं और उनके पास न कोई अंगरक्षक है और न कोई हथियार ही। उसे यह अवसर अपने काम के लिए अनुकूल लगा। वह दाहिने हाथ में पिस्तौल और बायें हाथ में खंजर लेकर पीछे से आया और लिंकन के सिर में गोली मार दी। लिंकन के दिमाग में गोली घुस गयी और वे आगे की ओर गिर पड़े। मैरी टाड के रुदन से पूरा थियेटर गूंज गया। भगदड़ मच गयी। लिंकन का खून फर्श पर बह रहा था। डाक्टरों ने बड़ा प्रयत्न किया परन्तु वे अपने राष्ट्रपति को बचा न सके।
राष्ट्रपति लिंकन की मृत्यु से पूरा अमेरिका दहल गया। लाखों नर-नारी फूट-फूटकर रो पड़े। सैनिक, प्रजा सब बहुत पीडि़त हुए। सर्वाधिक रोये दक्षिण राज्यों के लाखों नीग्रो जिनको गुलामी से मुक्ति दिलानें में लिंकन का रक्त बहा था। लिंकन की शव-यात्रा निकली जिसमें चालीस लाख आंसू बहाते लोग थे। वाशिंगटन से शव को स्प्रिंगफील्ड लाया गया और स्प्रिंगफील्ड में, जहां लिंकन का अपना घर था, वहां उनके शव को दफनाया गया।

पति की मृत्यु के बाद मैरी लिंकन अपने बेटों के साथ अपने घर में न रह सकीं। वे अपनी बहन के साथ उन्हीं के घर में आ गयीं। जिस पलंग पर मैरी लिंकन अपने राष्ट्रपति पति के साथ सोया करती थी, उसे वे अपने साथ ले आयी थीं। अपनी बहन के घर के एक कमरे में उन्होंने वह पलंग डलवाया था। वे बिलकुल चुप रहती थीं। रात को जब सोती तो पलंग की वह जगह खाली छोड़ देती थीं जिस पर राष्ट्रपति लिंकन सोया करते थे।


1 comment:

  1. अद्भुत, प्रेम की पराकाष्ठा का सहज रूप

    ReplyDelete