Saturday, June 18, 2016



कश्मीरी  रामावतारचरित

रामावतारचरित’ कश्मीरी भाषा-साहित्य में उपलब्ध रामकथा-काव्य-परंपरा का एक बहुमूल्य काव्य-ग्रन्थ है जिसमें कवि ने रामकथा को भाव-विभोर होकर गाया है। कवि की वर्णन-शैली एवं कल्पना शक्ति इतनी प्रभावशाली एवं स्थानीय रंगत से सराबोर है कि लगता है कि मानो ‘रामावतार चरित’ की समस्त घटनाएं अयोध्या, जनकपुरी, लंका आदि में न घटकर कश्मीर-मंडल में ही घट रही हों । ‘रामावतारचरित’ की सबसे बड़ी विशेषता यही है और यही उसे ‘विशिष्ट’ बनाती है। ‘कश्मीरियत’ की अनूठी रंगत में सनी यह काव्यकृति संपूर्ण भारतीय रामकाव्य-परंपरा में अपना विशेष स्थान रखती है.
सन् 1965 में जम्मू व कश्मीर प्रदेश की कल्चरल अकादमी ने ’रामावतार चरित’ को ‘लवकुश-चरित’ समेत एक ही जिल्द में प्रकाशित किया है। कश्मीरी नस्तालीक लिपि में लिखी 252 पृष्ठों की इस रामायण का संपादन/परिमार्जन का कार्य कश्मीरी-संस्कृत विद्वान् डॉ0 बलजिन्नाथ पंडित ने किया है। मैंने इस बहुचर्चित रामायण का भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ के लिए सानुवाद देवनागरी में लिप्यंतरण किया है। 481 पृष्ठों वाले इस ग्रन्थ की सुन्दर प्रस्तावना डा0 कर्ण सिंह जी ने लिखी है और इस अनुवाद-कार्य के लिए 1983 में बिहार राजभाषा विभाग, पटना द्वारा मुझे ताम्रपत्र से सम्मानित भी किया गया .










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