Monday, June 20, 2016


विस्थापित पंडितों से संबंधित प्रश्नों का हल 


कश्मीर और कश्मीर के विस्थापित पंडितों से संबंधित प्रश्नों का हल ढूँढने के लिए अचानक कुछ सरगर्मी-सी आ गयी है। पहले श्रीश्री ने पिछली शुक्रवार की शाम को हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक से उनके आवास पर मुलाकात कर कश्मीर में चल रही स्थितिपर विस्तार से चर्चा की। बाद में दर्जन-भर स्वघोषित पंडित नेताओं ने भी मीरवाइज से मुलाकात की और पंडितों की घाटी में वापसी औरउनके पुनर्वास पर विचार-विमर्श किया। तनाव-ग्रस्त घाटी में शांति स्थापित हो और पंडित समुदाय ससम्मान घाटी में लौटे,उसके लिएकिये जाने वाले ऐसे प्रयासों की हर स्तर पर प्रशंसा की जानी चाहिय। लेकिन चिंता का विषय थोड़ा अलग है। ऐसी महत्वपूर्ण वार्ताओं केलिए हमेशा मान्यता-प्राप्त मंचों के माध्यम से ही बातचीत की पहल की जानी चाहिए । छोटे गुट नेतृत्व में केवल विभाजन पैदा करते हैं।मुझे ध्यान है ‘पनुन कश्मीर’ पंडितों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था हुआ करती थी।पिछले लगभग पच्चीस वर्षों के दौरान इस संस्था ने हरमुश्किल घड़ी में पंडितों का साथ दिया है और धरने-प्रदर्शनों के आलावा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीरी पंडितों के मुद्दे कोज़ोरदार तरीके से उठाया है और जिंदा रखा है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या ‘पनुन कश्मीर’ के नेताओं को हाशिए पर डाल दिया गया हैया फिर ‘पनुन कश्मीर’ के नेताओं ने अपनी मर्ज़ी से इन स्वयंभू पंडित नेताओं को अपना कार्यभार सौंप दिया है? कौन नहीं जानता किबहुत-सारे नेता या मंच ज्यादातर मामले को सुलझाने के बजाय उसे उलझाते ही हैं।
खबर यह भी है कि अपनी मुलाक़ात के दौरान श्रीश्री मीरवाइज़ की कश्मीर के लिए आज़ादी की बातें और दूसरी शिकायतें सुनते रहे मगर कश्मीर में पंडितों को वादी में बसाने के प्रस्ताव के पक्ष में अपना कोई ठोस अभिमत सामने नहीं रखा। प्रश्न उठता है कि श्रीश्री ऐसेव्यक्ति से मिले ही क्यों जिसका चिन्तन देश-विरोधी है, जो अलगाववादियों का पक्षधर है और जो हमेशा यह कहता रहा है कि कश्मीर काभारत के साथ विलय विवादास्पद है। देश-विरोधी सोच रखने वाले व्यक्ति से श्रीश्री का मिलना उन्हें प्रश्नों के दायरे में लाकर खड़ा करताहै। जो शख्स कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानता और जिसका चिंतन हमेशा से देश-विरोधी रहा हो,उसके यहाँ क्यों हमारे सन्त-महात्मा या नेतागण मिलने जाते हैं?क्या मीरवाइज मान गए कि कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है और उन्हें अब अपने कहे परपछतावा है?कुछ तो है जिसकी वजह से हमारी सरकारें या फिर हमारे प्रबुद्ध नेतागण और चिंतक अलगाववादियों को बुरा नहीं कह रहेऔर न ही उनके व्यवहार को अन्यथा ले रहे हैं।

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