Tuesday, June 21, 2016


झबरे की भौं भौं

तंग-दस्ती अथवा फटेहाली कौन चाह्ता है भला? सभी सुख-चैन और आनन्द चाहते हैं.


उचित-अनुचित साधनों से प्राप्त सुविधाएँ अथवा सुख-चैन जब छिन जाते हैं या फिर छिनने को होते हैं तो व्यक्ति कुनमुनाने लगता है या फिर भौं-भौं करने लगता है. कश्मीरी की एक लघु-कहानी याद आ रही है: “एक बार एक सफेद झबरा कुत्ता मालिक की कार से सर बाहर निकाले इधर-उधर कुछ देख रहा था. सेठजी दूकान के अंदर कुछ सामान खरीदने के लिए गए हुए थे. कुत्ते को देख लगे बाजारी कुत्ते उसपर भूँकने. झबरे ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. कुत्ते फिर और लगातार भौं-भौं करने लगे. तब भी झबरा चुप. आखिर जब कुत्तों ने आसमान सर पर उठा लिया तो झबरा बोला:”दोस्तों, क्यों अपना गला फाड़ रहे हो? मैं भी आपकी ही जाति का हूँ. लगता है मेरा सुख-चैन आप लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रहा? तुम लाख चिल्लाते रहो, मगर तुम्हारी इस भौं-भौं से मैं अपना आराम छोड़ने वाला नहीं.” 

कौन नहीं जानता कि सुख-चैन को प्राप्त करने के लिए, उसे सुरक्षित रखने के लिए या फिर उसे हथियाने के लिए विश्व में एक-से-बढ़कर-एक उपद्रव हुए हैं. आज के समाज में हर स्तर पर जो ‘हलचल’ व्याप्त है, वह प्रायः इसी भावना की वजह से है.

No comments:

Post a Comment